महारानी अजबदे ​​पंवार का इतिहास और प्रेम कहानी

by सितम्बर 29, 2023

प्रस्तावना

इस लेख में, मैं आपके साथ अजबदे पंवार का पूरा इतिहास साझा करने जा रहा हूं। इसमें उनकी पहचान के साथ-साथ उनकी और महाराणा प्रताप की प्रेम कहानी और उनकी शादी और मृत्यु कैसे हुई, इसके बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। इसलिए इस लेख को अंत तक पढ़ें और नए अपडेट के लिए हमारे निःशुल्क न्यूज़लेटर की सदस्यता लेना न भूलें।

महाराणा प्रताप सिंह का नाम भारत के अनमोल रत्नों में आता है। लेकिन इस महान शख्सियत के पीछे उनकी पत्नी महारानी अजबेदे पुंवर की बड़ी भूमिका थी। महाराणा प्रताप और अजबदे ​​की कहानी वाकई दिलचस्प है।

भारतीय इतिहास में कई घटनाएँ और कहानियाँ जो रोमांच से भरी हैं, उसमे कई प्रेमकहानियाँ भी शामिल हैं। भगवान राम-सीता की कहानी हो, या राधा-कृष्ण की, हम आज भी उनकी जीवनगाथा और प्रेमकथा को याद करते हैं। आज मैं ऐसी ही एक दिलचस्प प्रेम कहानी बताने जा रहा हूं, जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते।

मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हम सभी जानते हैं, जिन्होंने अकबर जैसे महत्वाकांक्षी सम्राट के खिलाफ लड़ाई लड़ी और मेवाड़ के अस्तित्व को बचाए रखा। लेकिन, उनकी और महारानी अजबेदे पुंवर की प्रेम कहानी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं इस अद्भुत प्रेम कहानी से जिसकी मिसाल राजस्थान के लोग समय-समय पर देते रहते हैं।

राजनीतिक कारणों से महाराणा प्रताप को आठ शादियाँ करनी पड़ीं, तो कई स्त्रोत उनके ग्यारह विवाह हुए ऐसा भी मानते है। हालाँकि, महारानी अजबदे ​​से उनकी पहली शादी उनके लिए सबसे खास थी।

कुँवर प्रताप सिंह का जन्म ईसवी १५४० में महाराणा उदय सिंह और महारानी जयवंताबाई के सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था। वह सूर्यवंशी कुलीन वर्ग के सिसौदिया राजपूत शाही परिवार से थे। बचपन में प्रताप को “कीका” कहकर बुलाया जाता था। भारतीय इतिहास में उन्हें हल्दीघाटी के युद्ध में उनके अनूठे पराक्रम के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। २८ फरवरी, ईसवी १५७१ को उन्हें मेवाड़ के महाराणा के रूप में गद्दी पर बिठाया।

बिजौलिया राजघराने कि अजबादे पुनवार

अजबादे वास्तव में कहाँ से थी?

बिजौलिया वर्तमान भीलवाड़ा जिले में एक स्थान था। ऐसा माना जाता था कि यह केवल उच्च वर्गों के लिए स्थान था। अर्थात् इस स्थान पर केवल प्रथम श्रेणी के राजपूत वर्ग को ही स्थान प्राप्त था।

अजबदे ​​पुनवार मेवाड़ प्रांत के एक छोटे से हिस्से बिजोलिया प्रांत के शाही परिवार से थे। चूंकि अजबदे ​​और प्रताप दोनों ही सिसौदिया वंश के थे, इसलिए दोनों एक-दूसरे से भली-भांति परिचित थे। वे बचपन से ही अच्छे दोस्त भी थे।

अज़ाबदे की माँ और पिता

वह राव ममरख सिंह और रानी हंसाबाई की बेटी थीं। वह बहुत विनम्र, नरम दिल लेकिन बहादुर और साहसी थीं।

अजबदे ​​और प्रताप के विवाह की कहानी

कुँवर प्रताप के लिए विवाह का प्रस्ताव

प्रताप के महाराणा बनने से पहले महाराणा उदय सिंह और कुँवर प्रताप ने मारवाड़ युद्ध में भाग लिया था। युद्ध में विजय के बाद वे अपने सरदार राव ममरख सिंह सिसौदिया के आग्रह पर बिजौलिया चले गये। इसी समय ममरख राव ने महाराणा उदयसिंह के सामने कुँवर प्रताप और अजबदे ​​के विवाह का प्रस्ताव रखा। चूंकि दोनों बचपन के दोस्त थे, इसलिए वे शादी के लिए भी राजी हो गए।

शादी के समय उनकी उम्र

मध्यकालीन भारत में कम उम्र में विवाह आम बात थी। इसलिए कुँवर प्रताप और अजबदे ​​का विवाह कम उम्र में ही हो गया। अतः विवाह के समय कुँवर प्रताप १७ वर्ष के तथा अजबदे ​​केवल १५ साल की थी।

विवाह की विधि एवं उपस्थित गणमान्य व्यक्ति

उनका विवाह १५५७ में भारतीय राजपूत परंपरा के अनुसार सारे हिंदू रीति-रिवाज से हुआ। कुछ स्रोतों के अनुसार उनका विवाह बिजोलिया में एक नदी के किनारे हुआ था। जहाँ मेवाड़ के सभी सरदार और जागीरदार सभी बिजोलिया निवासियों सहित उपस्थित थे। चूँकि वे दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते थे, इसलिए उनके मन में एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान की भावना थी।

प्रेम विवाह या सुसंगत विवाह?

ज्यादातर लोगों के मन में ये सवाल होता है कि अगर शादी की अगर योजना से हुई है, तो ये प्रेम कहानी कैसी है? मेरे अनुसार, एक बार जब कोई व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है, तो उसकी उसी व्यक्ति से शादी होने की संभावना कम हो जाती है। यह संभावना आज की दुनिया में जातिवाद, प्रतिष्ठा, जाति, वर्ग और अहंकार,दो परिवारों में असंगती इन जैसे कारकों के कारण लुप्त हो जाती है। लेकिन ये बातें महाराणा प्रताप और अजबदे ​​की प्रेम कहानी में नहीं आईं।

एक समर्पित पत्नी और एक कर्तव्यपरायण साम्राज्ञी

हालाँकि कुँवर प्रताप को अजबदे ​​से प्यार हो गया था, लेकिन उनका विवाह दोनों परिवार के सदस्यों की सहमति से ही हुआ था। मेरे अनुसार इसका कारण यह है, कि राजपूत परिवार में महिलाओं के सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। चाहे रानी हो या दासी, उनके साथ आदरपूर्वक व्यवहार करना शुरू से ही राजपूती खून में है। अगर सम्मान की बात होती तो महिलाएं भी मौत का सामना मुस्कुराहट के साथ करतीं।

इसका उदाहरण दें तो, युद्ध के बाद शत्रु का विजय हो जाने के बाद होनेवाला जौहर। ये राजपूतानियाँ आज भी महिलाओं की सीमाओं और गरिमा का साक्षी हैं।

मेवाड़ में महारानी अजबदे का स्थान

जाहिर सी बात है, मेवाड़ की महारानी होने के नाते उनका पद विशेष था। कुँवर प्रताप के महाराणा बनने के बाद उन्होंने प्रताप के अनुरोध पर हर राजनीतिक मामले की जानकारी रखना शुरू की।

इसलिए उन्होंने सामान्य महिलाओं की तरह राजनीति से दूर न रहकर समय-समय पर महाराणा प्रताप का समर्थन किया। प्रताप भी समय-समय पर उनसे राज्य संबंधी विषयों पर चर्चा करते थे। महारानी होने के कारण, महराणा अजबदे ​​को महत्वपूर्ण गोपनीय सूचनाएं भी देते थे।

उन्होंने स्वार्थ को परे रखकर सदैव कर्तव्य को प्राथमिकता दी। अतः शीघ्र ही वह प्रताप की माता जयवंताबाई की प्रिय एवं विश्वासपात्र बन गयी।

महारानी अजबदे ​​और महाराणा प्रताप के संतान

महारानी अजबदे ​​ने शादी के दो साल बाद १६ मार्च ईसवी १५५९ को अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। महाराणा प्रताप और महारानी अजबदे ​​ने इस पुत्र नाम अमर सिंह रखा। दूसरे पुत्र का नाम भगवान दास था।

महल के बाहर अजबदे ​​और प्रताप का जीवन

चित्तौड़गढ़ की लड़ाई के बाद का निवास

२३ अक्टूबर, ईसवी १५६८ में मुगल बादशाह अकबर ने चित्तौड़गढ़ किले को घेर लिया। किले में भोजन की आपूर्ति धीरे-धीरे ख़त्म हो गई, जिससे किले से बाहर आकर लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। ऐसे में मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए शाही परिवार को सुरक्षित स्थान पर ले जाना जरूरी था। अत: सलाहकारों एवं मंत्रियों की सलाह पर महाराणा उदयसिंह ने परिवार को गोगुन्दा स्थानांतरित कर दिया।

पूरे परिवार को एक जगह रखना खतरे से खाली नहीं था। इसलिए विकिपीडिया के अनुसार, कुँवर प्रताप और अजबदे ​​को छप्पन इस स्थान पर पहुँचा दिया गया। छप्पन वर्तमान बांसवाड़ा जिले में स्तित है। कुछ स्रोतों के अनुसार, प्रताप और उनकी पत्नी अजबदे ​​राजपीपला में रहते थे। वह इन जगहों पर करीब ३ से ४ महीने तक रहे।

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का निवास

ईसवी १५७६ में हल्दीघाटी के युद्ध में अनेक वीरों ने अपना बलिदान दिया। हालाँकि इस युद्ध का नतीजा उनके ख़िलाफ़ गया, लेकिन उन रियासती योद्धाओं की बहादुरी ने संघर्ष जारी रखने की उम्मीद बरकरार रखी।

मुगलों के खिलाफ संघर्ष में हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद, उनके पास संसाधनों के साथ-साथ भोजन की भी कमी थी। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी एक मां होने के बाद भी उन्होंने एक महारानी के रूप में अपने क्षत्राणी धर्म को प्राथमिकता दी।

ईसवी १५७२ में महाराणा उदय सिंह की मृत्यु हो गई। उसके बाद कुँवर प्रताप की माँ महारानी जयवंताबाई ने संन्यास ले लिया। इसके बाद, उनकी पत्नी अजबदे ​​ने इस बात का ख्याल रखा कि, माँ और पिता दोनों के एक साथ बिछड़ जाने से पति कभी भी अकेले न पड़ जाय।

उन्होंने एक पत्नी, माँ होने के साथ-साथ एक रानी होने का भी फर्ज निभाया। इससे पता चलता है कि, महारानी अजबदे ​​कितनी बहादुर थीं। उन्होंने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी निष्ठापूर्वक महाराणा प्रताप का साथ दिया।

महारानी अजबदे ​​और उनके जैसी हजारों राजपूत महिलाओं के कारण ही महाराणा प्रताप और राजपूत वीर मुगलों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने में सक्षम थे, जिनका उल्लेख किसी भी इतिहास की किताब में नहीं किया जाता। अत: ऐसी बहादुर और साहसी महिलाओं को मेरा प्रणाम।

आज की दिखावटी दुनिया में, ज्यादातर लोग बनावटी लोगों की नकल करते हैं, और उस झूठ प्यार समझ लेते हैं। इसलिए, आज की पीढ़ी को सोशल मीडिया से बाहर आकर इतिहास में झांकने की जरूरत है।

आशा है महारानी अजबेद पुंवर से जुड़ी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इस लेख के बारे में आप क्या सोचते हैं? भविष्य में भी ऐसी दिलचस्प इतिहास की जानकारी ईमेल द्वारा निःशुल्क प्राप्त करने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लेना न भूलें।

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