3 Long Bedtime Stories for Kids in Hindi

by फरवरी 28, 2024

चार दोस्तों की कहानी

बहुत समय पहले, भारत के श्रीरंगन राज्य के एक गाँव में, चार दोस्त रहते थे, मानिकचंद, गोपीचंद, रविचंद और जयचंद। पढ़ाई के दौरान और पढ़ाई पूरी होने के बाद भी वे साथ-साथ रहते थे।

गोपीचंद, रविचंद और जयचंद बहुत बुद्धिमान थे। इन तीनों की अलग-अलग कलाएं थीं। रविचंद के पास जानवर के अवशेषों से उसके बारे में बताने की कला थी, जयचंद प्राणीशास्त्र में और रविचंद पुनर्जीवन जीवविज्ञान में पारंगत थे। लेकिन माणिकचंद का अधिकतर समय खाने-पीने और सोने में ही बीतता था। कोई काम न करने के कारण उसका कोई सम्मान नहीं करता था और सभी उसे मूर्ख समझते थे।

ये सभी दोस्त जिस गाँव में वह रहते थे, वहाँ एक वर्ष भयंकर सूखा पड़ा। जिसके कारण उस गांव के कई लोग पानी और अनाज की कमी के कारण गांव छोड़ने लगे। तब गोपीचंद ने कहा, “अभी गांव छोड़ना जरूरी है, नहीं तो हमारे सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी वैसे भी पानी के बचे-कूचे स्रोत भी अब खत्म होते जा रहे हैं।”

सभी दोस्त गांव छोड़ने को तैयार हो गये।

तब रविचंद ने जयचंद और गोपीचंद को अलग से बुलाया और धीरे से पूछा, “चलो चलें, लेकिन माणिकचंद का क्या करें? क्योंकि उसके पास कोई कौशल नहीं है। तो क्या हमें उसे साथ में ले जाना चाहिए या यहीं रखना चाहिए?”

जयचंद ने कहा, “भले ही वह हम पर निर्भर हो, फिर भी उसे यहाँ मरने के लिए छोड़ना ठीक नहीं है।”

गोपीचंद भी जयचंद के विचार से सहमत हुआ और बोला, “तुम सही कह रहे हो, जयचंद! हम सभी इतने समय से साथ हैं, अब बुरे समय में उसे अलग करना ठीक नहीं होगा। अब से हम जो भी कमाएंगे उसे हम चारों के बीच चार हिस्सों में बांट लेंगे।”

रविचंद और जयचंद सहमत हुए, “हाँ.. ठीक है!”

माणिकचंद, गोपीचंद, रविचंद और जयचंद नाम के चार भाई घने जंगल से होकर गुजरते हुए।
माणिकचंद, गोपीचंद, रविचंद और जयचंद नाम के चार भाई घने जंगल से होकर गुजरते हुए।

माणिकचंद, गोपीचंद, रविचंद और जयचंद नाम के चार भाई घने जंगल से होकर गुजरते हैं।

सभी ने जरूरी सामान पैक किया और राजधानी शिवपुर के लिए रवाना हो गए। माणिकचंद के साथ सभी मित्र स्थानांतरण के लिए निकल पड़े। पुरे दिन पैदल यात्रा करने के बाद रास्ते में उन्हें एक बड़ा जंगल मिला। जैसे-जैसे शाम होने लगी, उन्होंने रात होने से पहले जंगल पार करने का फैसला किया। ताकि, जंगल ख़त्म होने के बाद वे जंगली जानवरों से सुरक्षित स्थान पर आराम कर सकें।

चूंकि, जंगल में बहुत सारे खूंखार जानवर थे, इसलिए सभी मित्र तेजी से जंगल पार करने के लिए चल रहे थे। बीच में, जयचंद को किसी जानवर की हड्डियों के अवशेष मिलते हैं। जानवर के अवशेष को सभी अन्य मित्रों को बताने के बाद वह सोचते है कि, यह सभी का कौशल का परीक्षण करने का एक अच्छा अवसर है।

फिर जयचंद रविचंद से पूछता है, “हड्डियों के अवशेषों को देखकर, रविचंद, क्या तुम इस जानवर को पहचान सकते हो और उसके बारे में बता सकते हो?”

हड्डियों की जांच करते हुए रविचंद बताता है कि, ये एक नरभक्षी शेर के अवशेष हैं, जो एक शिकारी के तीर से घायल हो गया था। किसी शिकारी द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वह काफी दूर से अपनी जान बचाकर यहाँ तक भागा। यहां पहुंचकर वह शिकारी के चंगुल से बच निकला, लेकिन अत्यधिक घायल अवस्था में होने के कारण उसने यहीं दम तोड़ दिया।

अब रविचंद जयचंद को संबोधित करते हुए कहता हैं, “अब उस शेर की हड्डियां जोड़ दो और उस पर शेर का पूरा शरीर बना दो।”

जयचंद काम पर लग जाता है, और कुछ ही समय में हड्डियाँ जोड़कर वह शेर का पूरा शरीर बना देता है।

अब जयचंद ने गोपीचंद को बुलाकर उसे अपने पुनरुत्थान जीव विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करके शेर को वापस जीवित करने के लिए कहा।

जैसे ही गोपीचंद आगे बढ़ता है, मानिकचंद उसे रोकते हुए कहता है, “रुको… रुको!! अगर तुम शेर को जिंदा कर दोगे तो वह हम सभी को मार डालेगा…।”

तब जयचंद कहता है, “माणिकचंद, इसे हमारी कृपा समझो कि तुम हमारे साथ हो.. और तुम हमें हमारे ज्ञान और विद्या का उपयोग करने से नहीं रोक सकते..”

जिस पर मानिकचंद कहता हैं, “हाँ मुझे पता है। मुझ पर आप सभी के बहुत एहसान है, और इसलिए मैं आप सभी को खोना नहीं चाहता।”

रविचंद कहता हैं, “तुम्हें हमारी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम हैं।”

माणिकचंद कहता हैं, “लेकिन मैं अपनी रक्षा करने में असमर्थ हूँ। मुझे एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ने दो..।”

सभी कहते है, “ठीक है, तुम ऊपर से हमारा कर्तब देखो।”

तब, माणिकचंद एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ जाता हैं, और उसके बाद गोपीचंद सिंह को जीवित कर देता हैं।

शेर जोर से दहाड़ते हुए सभी पर झपटता है और उन्हें मार डालता है। कुछ समय बाद सिंह चला जाता है, माणिकचंद अपने दोस्तों को खोने से बहुत दुखी होता है। लेकिन, नियति के सामने व्यावहारिक बुद्धि शुन्य, यह सोचकर वह आगे राजधानी की ओर बढ़ता है।

अब, उसकी मदद करने के लिए आसपास कोई नहीं होने के कारण, वह खुद ही मूर्तिकला की कला सीखता है। कुछ समय तक अनुभव प्राप्त करने के बाद, उसे श्रीरंगन के राजा द्वारा उच्च वेतन वाली नौकरी मिलती है।

कहानी का अर्थ:

१. कभी भी अपने आप को दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति न समझें, क्योंकि केवल शिक्षा ही किसी को बुद्धिमान नहीं बनाती। सच्ची बुद्धिमत्ता उस शिक्षा को अपने जीवन में समझदारी से उपयोग करने में है।

२. यदि आप प्रशिक्षण पाठों को वास्तविक जीवन में बुद्धिमानी से लागू नहीं करते हैं, तो सैकड़ों वर्षों का प्रशिक्षण भी बर्बाद हो सकता हैं।

३. कला अर्जित की जा सकती है, लेकिन प्रत्येक मनुष्य को व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए।

वृद्ध सुल्तान की कहानी

जंगल के पास एक छोटे से गाँव में भिवराव नाम का एक किसान और उसकी पत्नी रंजनीदेवी रहते थे। उनका छह महीने का बच्चा था। भिवराव के पास सुल्तान नाम का एक बहुत ही ईमानदार कुत्ता था। सुल्तान बचपन से ही उनके साथ था, वर्षों तक उसने परिवार को जंगली जानवरों और चोरों से बचाया था। लेकिन वह सुल्तान अब बूढ़ा हो चुका था। उसके दांत ठीक से काम नहीं कर रहे थे, जिसके कारण वह ठीक से खा नहीं पा रहा था।

जब सुल्तान जवान था, तब उसके भौंकने मात्र से डाकू घर में घुसने से पहले दस बार सोचने पर मजबूर हो जाते थे। छोटे-बड़े जानवर भाग जाते थे। अब सुल्तान बूढ़ा होने के कारण अक्सर बीमार रहता था। जिसके कारण अब वह पूरे समय पहरा नहीं दे पाता था।

परिणामस्वरूप, पिछले कुछ महीनों में कुल मिलाकर चार बार बकरियों की चोरी हुई। उनमे से कुछ चोरियाँ कभी जंगली जानवरों द्वारा तो कभी चोरों द्वारा की गयी।

तब भिवराव ने अपनी पत्नी से कहा, “सुल्तान अब बूढ़ा हो गया है, और वह अब किसी काम का नहीं रहा। इसलिए मुझे लगता है कि, उसे दूर जंगल में छोड़ देना चाहिए।”

तब रंजनीदेवी अपने पति से कहती हैं, “हालांकि सुल्तान बूढ़ा है, लेकिन वह बचपन से हमारे साथ है। उसे जंगल में छोड़ना ठीक नहीं होगा।”

तब पति भिवराज कहता है, “ठीक है, एक बार और देखते हैं, अगर वह इस बार भी असफल रहा, तो मैं उसे निश्चित रूप से जंगल में छोड़ दूंगा।”

पत्नी सहमत हुई, “ठीक है।”

सुल्तान अपने महल के बाहर आँगन से यह सब सुन रहा था। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वह जंगल में अपने सबसे अच्छे दोस्त भेड़िये के पास जाता है। भेड़िया बहुत चालाक होता है और वह इस समस्या पर एक तरकीब निकालता है। तरकीब बताने के बाद सुल्तान अपने मालिक के घर वापस चला जाता है।

अगले दिन, हमेशा की तरह, भिवराव और रंजनीदेवी खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने अपने बच्चे को एक पेड़ के नीचे छाया में रखा और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सुल्तान की थी।

सुल्तान नाम का एक बूढ़ा कुत्ता उस भेड़िया का पीछा करते हुए जिसने बच्चे को भगाया है।
सुल्तान नाम का एक बूढ़ा कुत्ता उस भेड़िया का पीछा करते हुए जिसने बच्चे को भगाया है।

तभी कुछ देर बाद भेड़िया वहां आया और दोनों के योजना के मुताबिक चाल की। उसने उस बच्चे को अपने जबड़ों में कपड़ा के साथ पकड़ लिया और जंगल की ओर भाग गया। सुल्तान भी उसके पीछे चला गया। योजना के अनुसार भेड़िया एक अँधेरी गुफा में रुक गया। वहां भेड़िये ने उस बच्चे को सुल्तान को सौंप दिया, और उसने जंगल की ओर प्रस्थान किया।

इधर खेत में, भिवराव और रंजनीदेवी इस बात से रो रहे थे कि, उनके बेटे को भेड़िया उठा ले गया है। चूंकि, सुलतान भी बूढ़ा था, इसलिए उन्हें उससे कोई उम्मीद नहीं थी। तभी सुल्तान एक छोटे बच्चे के साथ वहां आता है। अपने बच्चे को सुरक्षित देखकर दोनों पति-पत्नी के जिस्म में जान आ जाती है।

भिवराव ने सुल्तान को पास लाया, और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “मुझे माफ कर देना दोस्त, कि मैंने कभी तुम्हें छोड़ने के बारे में सोचा।”

उस घटना के बाद, सुल्तान ने फिर से अपने मालिक के घर की सख्ती से रक्षा करना शुरू किया। यहां, भिवराव ने भी उसे दोबारा जंगल में छोड़ने का विचार पूरी तरह से त्याग दिया।

उसके बाद दूसरे सप्ताह में वह दिन भेड़िया फिर सुल्तान के पास आया। दोस्त को देखकर सुल्तान कहता है, “नमस्ते दोस्त, तुम इतनी देर से आए? सब ठीक तो है ना..”

जिस पर भेड़िया कहता है, “हां, सब ठीक है।”

वह आगे कहता है, “सुल्तान, तुम्हारी मदद करने के बदले में मुझे भी एक मदत की ज़रूरत है।”

सुल्तान पूछता है, “मैं अपने दोस्त के लिए क्या कर सकता हूँ?”

भेड़िया कहता है, “मुझे भूख लगी है, मुझे तुम्हारे मालिक की एक बकरी खाने दो।”

इस पर सुल्तान कहता है, “तुम्हारा मुझ पर एहसान है। लेकिन, मैं तुम्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं दे सकता, क्योंकि इसके लिए मेरे विश्वास से समझौता करना होगा। इसके बजाय मुझे कुछ और बताओ…।”

भेड़िया कहता है, “मैं अपनी भूख मिटाने के अलावा अभी और कुछ नहीं सोच सकता। अगर तुम मुझे बकरी नहीं खाने दोगे, तो मैं बिना पूंछे ही तुम्हारी बकरी खा लूँगा? तुम बहुत बूढ़े हो और तुम मुझे रोक नहीं सकते।” .ही..ही!”

सुल्तान भेड़िये से कहता है, “दोस्त यहाँ मेरे मालिक की बकरियाँ है, चले जाओ..।”

भेड़िया उसकी बातों को अनसुना कर देता है, और बंधी हुई बकरियों की ओर मुड़ जाता है।

भेड़िये को मालिक की बकरियों के पास आते देख सुल्तान ने दोस्त को चेतावनी दी, “अगर मैं आज मर भी जाऊँ, तो भी तुम्हें बकरियों को छूने नहीं दूँगा। रुक जाओ…वही रुको!”

भेड़िये की यहाँ भी एक योजना के साथ आया था। सुल्तान के आगे बढ़ने के बाद, भेड़िया अपने दूसरे जंगली दोस्त, भालू को बुलाता है।

मालिक के घर में एक बिल्ली थी, जो सुल्तान की अच्छी दोस्त थी। सुल्तान की आवाज़ सुनकर वह तुरंत बाहर आती है। जब बिल्ली को पता चलता है कि सुल्तान पर एक जंगली भालू हमला करने वाला है, तो बिल्ली मदद के लिए आगे बढ़ती है। भले ही उसके पास उतना सामर्थ्य नहीं था फिर भी वह आगे भालू की ओर बढ़ी। जैसे ही भालू और भेड़िये ने बिल्ली को दूर से देखा, उसकी लंबी पूँछ किसी तेज़ तलवार की तरह लग रही थी।

बिल्ली की पूँछ से डरकर भालू झाड़ी में छिप गया, जबकि भेड़िया पेड़ के पीछे छिप गया। जैसे ही बिल्ली झाड़ियों में घुसी, भालू उठकर वहाँ से जंगल की ओर भागने लगा। इधर भेड़िया भी उसके साथ भागने लगता है।

“सुल्तान, मुझे माफ़ कर दो। यह मेरी गलती नहीं है। अपराधी यह भेड़िया है। उसने मुझे यहाँ आने के लिए कहा था..?” भालू सुल्तान को संबोधित करते हुए।

तब भेड़िया सुल्तान से माफी मांगता है, “मुझे माफ कर दो मित्र, मुझे भूख के आगे कुछ दिख नहीं रहा था। जंगल में मेहनत से शिकार करने के बजाय मुझे तुम्हारे मालिक की बकरियों को खाना मुझे आसान लगा।”

भेड़िया अपनी कायरता और स्वार्थ पर शर्मिंदा था।

सुल्तान ने उसे प्यार से गले लगाया.. और दोनों के बीच की दूरियां तुरंत गायब हो गईं। भेड़िये ने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी और सुल्तान के साथ फिर से अच्छे दोस्त बनने का वादा किया।

कहानी का अर्थ:

“वफादारी की कीमत हमेशा कौशल से अधिक होती है।”

अमीर और गरीब भाइयों की कहानी

मंगलपुर गाँव में एक छोटा सा परिवार था, जिसमें सविता नाम की एक महिला और उसके दो बच्चे थे। पति की अचानक मौत के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी सविता पर आ गई थी।

सविता ने अपना पूरा जीवन अपने दो बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा में बिताया था। लेकिन, अब उनके बच्चे बड़े हुए थे और सविता को एक बड़ा फैसला लेना पड़ा।

अरे सविता बहन आप आ गईं, अंदर आइए। क्या हुआ, सब ठीक तो है?

भाई श्रीधर, आप जानते हैं, मैंने अपने दोनों बच्चों को बड़ी कठिनाई से पाला है। अब उनके शहर जाकर कॉलेज जाने का समय आ गया है।

लेकिन, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि, मैं उन दोनों को आगे पढ़ा सकूँ, यदि किसी एक बेटे को नहीं पढ़ाया गया तो उसके साथ अन्याय होगा। इस स्थिति में, मुझे क्या करना चाहिए?

तुम चुप रहो, और मुझे बताओ कि दोनों में से कौन अधिक होशियार है। मेरे दोनों बेटे बेहद बुद्धिमान हैं, लेकिन बेटा मानब पढ़ने में ज्यादा अच्छा है, हालाँकि अतुल भी अच्छा पाठक है।

फिर मानब दोनों में बड़ा भी है और बुद्धिमान भी। आप उसे पढ़ाई के लिए शहर भेज दीजिए, और अतुल को अपने पास रख लीजिए। मैं जानता हूँ कि, रामु हलवाई के पास एक नोकर की कमी है, मैं उसे वहां तैनात कर दूँगा।

श्रीधर की बात सुनकर सविता को राहत मिली। वह मानब को पढ़ाई के लिए बाहर भेजती है और अतुल को रामू हलवाई के यहाँ काम पर लगाती है। अतुल को पढ़ाई न कर पाने का मलाल तो था, लेकिन वह घर के हालात से अच्छी तरह वाकिफ था। अत: उसे आगे की शिक्षा के लिए माँ से बिल्कुल भी ज़िद नहीं की।

दिन बीतते गए, और तीन साल बाद मानब को एक बड़ी फूड चेन में जूनियर मैनेजर की नौकरी मिल गई।

माँ, यह मिठाई ले लो, मुझे एक बड़ी फूड चेन कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई है।

कुछ ही महीनों में मानब को जूनियर से सीनियर मैनेजर के पद पर पदोन्नत कर दिया जाता है। वह अतुल और सविता को शहर ले जाता है।

माँ, मेरे बॉस कल डिनर पर आ रहे हैं। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने पूरे परिवार को यहां लाया हूं, तो वे बहुत खुश हुए।

अतुल ने कहा, “ओह भैया, उन्हें बुलाओ, ताकि हम भी तुम्हारे बॉस से भी मिल सके।”

मानब ने अपनी माँ से कहा, “लेकिन माँ, आपकी तबीयत ठीक नहीं है, तो खाना कौन बनाएगा?”

अतुल ने कहा, “चिंता मत करो भैया, जब तुम पढ़ रहे थे, तो मैंने रामू हलवाई से बहुत कुछ सीखा है। आप देखना, मैं ऐसे डिश बनाऊंगा कि, बॉस खाने के साथ अपनी उंगलियां चाटते रह जाएंगे।”

मानब ने कहा, “लेकिन एक बात याद रखना अतुल, बॉस एक पाँच सितारा होटल के मालिक है, इसलिए खाना भी वैसा ही होना चाहिए।

अतुल ने जवाब दिया, “भाई, इन सब बातों की चिंता मत करो, तुम सिर्फ काम पर ध्यान दो। देखो, खाना खाते ही तुम्हारा डबल प्रमोशन पक्का है।”

ऐसा कहते ही घर के सभी लोग जोर-जोर से हँसने लगे।

अगले दिन अतुल बड़ी मेहनत से कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाता है।

कुछ देर बाद अतुल ने मानब से कहा, “भैया, तुम्हारे बॉस आये हैं, मैं दरवाज़ा खोलता हूँ।”

“नहीं, नहीं, तुम रहने दो, बॉस क्या सोचेंगे कि, उनके भाई ने कैसे कपड़े पहने हैं, मैं दरवाज़ा खोलता हूँ।” मानब ने उत्तर दिया।

मानब ने आगे कहा, “सुनो, तुम अंदर ही रहो, ज्यादा बाहर आने की जरूरत नहीं है। यह सुनकर अतुल को बहुत दुःख हुआ। और बिना कुछ कहे वह अंदर चला जाता है, और डाइनिंग टेबल सेट करने लगता है।

“हेलो सर, आइए सर।”

बॉस भी अतुल से, “गुड मॉर्निंग अतुल।”

“सुप्रभात मानब। वाह रे मानब!! तुम्हारा घर तो बहुत सुन्दर है। तुम्हारी माँ और भाई कहाँ हैं?” मैं तुरंत आपका परिचय करा देता हूँ सर!

मानब ने वहीं से आवाज लगाई, “माँ, ओ माँ, बॉस आये हैं।”

मानब की माँ सविता बाहर आती है, “हैलो भाईसाहब, कैसे हो आप?

इधर मानब, उसका बॉस और उसकी माँ आपस में बातें कर रहे होते है, और उधर अतुल खाना बनाने में व्यस्त था।

सविता का परिवार मानब के बॉस के साथ डिनर करते हुए।
सविता का परिवार मानब के बॉस के साथ डिनर करते हुए।

कुछ देर बाद वे सभी खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर आते है। टेबल सजी हुई देखकर अतुल का बॉस बहुत खुश हुआ।

एक तरफ कांटा, दूसरी तरफ चाकू और चम्मच, टिशू टेबल क्लॉथ, सब कुछ सही था। खाना खाने के बाद मानब की माँ ने पूछा, “उम्मीद है आपको खाना पसंद आया होगा सर।”

बॉस ने माननीय की माँ से कहा, “यह बहुत अच्छा था, इसे किसने बनाया था?

माँ ने उत्तर दिया, “खाना मेरे सबसे छोटे बेटे अतुल ने बनाया था।”

तभी बॉस ने मानब से कहा, “अरे, अतुल घर पर है। तुमने अभी तक मुझसे परिचय नहीं कराया।”

माँ ने उत्तर दिया, “सर, क्योंकि वह खाना बनाने में व्यस्त था।”

माँ अपने छोटे बेटे को आवाज़ देती है, “अतुल…अतुल बेटा, ज़रा यहाँ आओ।”

अतुल झिझकते हुए बाहर आया।

“बेटा, तुमने बहुत अच्छा खाना बनाया है। क्या तुमने कुकिंग का कोर्स किया है?” बॉस ने अतुल की तारीफ की।

“अरे नहीं सर, वह हमारे गाँव में एक छोटी सी हलवाई की दुकान में नौकर था, इसलिए थोड़ा-बहुत खाना बनाना आता है।”

अपने भाई की यह बात सुनकर अतुल फिर से उदास हो जाता है, और खाना खाने बैठ जाता है।

जाने से पहले, मानब का बॉस अतुल को प्रस्ताव देता है।

बॉस ने अतुल की तारीफ करते हुए उसकी सविताजी से कहा, “खाना खाकर मजा आ गया। अतुल ने न सिर्फ खाने-पीने का बल्कि टेबल की साज-सज्जा का भी पूरा ख्याल रखा।”

बॉस ने आगे कहा, “सविताजी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।”

“आपका बेटा अतुल भी बहुत प्रतिभाशाली है, और हमें एक नए शेफ की जरूरत है। अतुल ने कहा कि, वह हेड शेफ की नौकरी करना पसंद करेगा।”

मानब ने बॉस को जवाब देते हुए कहा, “लेकिन सर अतुल के पास इसकी कोई औपचारिक डिग्री नहीं है, वह ऐसे ही बस कर लेता हैं।”

“डिग्री की इतनी कुछ समस्या नहीं, केवल खाने का स्वाद और उसे बनाने के दौरान सफाई होनी चाहिए और कुछ नहीं,” बॉस ने कहा।

बॉस ने अतुल से कहा, “अतुल, तुम कल मानब के साथ ऑफिस आओ और कुछ बनाकर हमें खिलाओ।”

यह सुनकर अतुल बहुत खुश हुआ, लेकिन मानब को बॉस द्वारा अतुल की तारीफ बिल्कुल पसंद नहीं आई। अगले दिन अतुल ऑफिस पहुंचता है, और अपनी डिश बनाने लगता है।

एक ओर अतुल तो दूसरी ओर मानब और बिच में मानब का बोस डिश का टेस्ट करते हुए।
एक ओर अतुल तो दूसरी ओर मानब और बिच में मानब का बोस डिश का टेस्ट करते हुए।

“सर, ये लीजिये, इटालियन ट्विस्ट के साथ दाल बाटी चूरमा”

बॉस ने फिर अतुल की तारीफ की और कहा, “वाह, वाह, बहुत बढ़िया अतुल, तुमने क्या बढ़िया डिश बनाई है।” मुझे इसमें पुदीने का स्वाद बहुत पसंद आया।

“क्या आपको पसंद है सर? “क्या मैं स्वाद ले सकता हूँ?” मानब ने झिझकते हुए पूछा।

“आह, यह तो बहुत अच्छा है”, मानब ने भी खाने की प्रशंसा करते हुए कहा।”

बॉस ने पूछा, “तुम हैरान क्यों हो?” बॉस ने गुस्से से मानब की ओर देखा।

“क्या हुआ सर? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।” मानब ने अनभिज्ञता जताते हुए पूछा।

अब क्या यह कहानी तुम स्वयं सुनना पसंद करोगे या मैं बताऊ?

अतुल गलती काबुल करते हुए बोलता है, “वो अतुल, मैंने इस रेस्टोरेंट के शेफ से कहा था कि, तुम्हारी थाली में नमक और काली मिर्च मिला दे, ताकि तुम्हें यहां नौकरी न मिल सके।”

“क्या?” यह सुनकर अतुल हैरान रह गया।

बॉस ने कहा, “सविता बहन ने मानब को फोन पर बात करते सुना था और मुझे पहले ही बता दिया था।

इससे पहले कि अचारी कुछ कर पाता, मैंने उसे सख्त चेतावनी दी कि वह ऐसा कुछ न करे।”

“लेकिन भाई, तुमने ऐसा क्यों किया?” अतुल ने उदास आँखों से मानब से पूछा।

मानब कहता है, “मैं नहीं चाहता था कि, तुम्हारे पास मुझसे ज्यादा पैसा और अच्छी जीवनशैली हो। मैं चाहता था कि, तुम मेरे टुकड़ों पर ऐसे ही पलते रहो।”

बॉस ने गुस्से में माननीय से कहा, “तुम्हे नौकरी से निकाल दिया गया है, मानब। मैं अपनी कंपनी में ऐसे आत्मकेंद्रित और स्वार्थी लोगों को नहीं चाहता।”

अतुल ने मानब का पक्ष लेते हुए कहा, “नहीं सर, ऐसा मत कीजिए, मेरा भाई दिल का बुरा नहीं है, उसे मत निकालिए।”

देखा मानब, तुमने इतना कुछ कुछ करने के बावजूद तुम्हारा भाई तुमसे कितना प्यार करता है।

मानब ने दोनों से माफ़ी मांगी, “सर, मुझे माफ़ कर दीजिए, हो सके तो तुम भी मुझे माफ़ कर दो अतुल।”

अब मानब को अपनी गलती का एहसास था। इस घटना के बाद दोनों अपनी माँ के साथ खुशी-खुशी रहने लगे।

कहानी का तात्पर्य:

कभी भी दूसरों को नीचा दिखाने के लिए काम न करें, बल्कि गर्व और स्वतंत्र रूप से जीने के लिए काम करें।

लेखक के बारे में

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आशीष सालुंके

आशीष एक कुशल जीवनी लेखक और सामग्री लेखक हैं। जो ऑनलाइन ऐतिहासिक शोध पर आधारित आख्यानों में माहिर है। HistoricNation के माध्यम से उन्होंने अपने आय. टी. कौशल को कहानी लेखन की कला के साथ जोड़ा है।

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