परिचय
महान वीरपांडिया कट्टबोम्मन का जन्म 3 जनवरी 1760 को पंचलंकुरिची में हुआ था। वे दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के थे। उन्होंने कर भुगतान करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी एलन ने उनके किले पर आक्रमण करने का प्रयत्न किया।
घटक | जानकारी |
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पहचान | तमिल पालयक्करर या पॉलीगर |
शासन | 16 अक्टूबर 1799 को समाप्त हुआ |
जन्म | 3 जनवरी 1760 को पंचलंकुरिची किला, भारत |
माता-पिता | माता: अरुमुगाथम्मल, पिता: जगवीर कट्टबोम्मन |
पत्नी | जक्कम्मल |
उत्तराधिकारी | ब्रिटिश शासन |
मृत्यु | 16 अक्टूबर 1799 को 39 वर्ष की आयु में कायाथार, भारत में |

वीरपांडिया कट्टबोम्मन कौन थे, यह जानने से पहले, पॉलीगर क्या होता है, यह समझते हैं:
पालयक्करर या पॉलीगर
इन व्यक्तियों को प्रशासकीय राज्यपाल और सैन्य सरदार के रूप में नियुक्त किया गया था। इन व्यक्तियों को सामंतवादी सरदार भी कहा जाता है और विजयनगर साम्राज्य के समय में उन्हें पालयक्करर नाम दिया गया था।
विजयनगर साम्राज्य महाराज श्री कृष्णदेवराय के समय अपने चरम पर था। इस साम्राज्य में, सामंतवादी सरदारों को गांवों के समूह की जिम्मेदारी दी गई थी। इन गांवों के समूह को पलायम कहा जाता है, इसलिए उनके प्रभारी को पालयक्करर नाम दिया गया था।
समय के साथ लोगों ने नाम बदलकर पॉलीगर कर दिया, जो पालयक्करर की तुलना में उच्चारण में आसान है। ये पॉलीगर देश के लोगों से निश्चित अवधि में कर वसूलने के लिए जिम्मेदार थे। उनके पास अपने क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण था और वे स्वतंत्र सरदारों के रूप में कार्य करते थे।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
वीरपांडिया कट्टबोम्मन का जन्म 3 जनवरी 1760 को तमिलनाडु के पंचलंकुरिची में एक प्रतिष्ठित और साहसी परिवार में हुआ था। उनके पिता, जगवीर कट्टबोम्मन, एक प्रसिद्ध पालयक्करर (पॉलीगर) और कुशल योद्धा थे, जिन्होंने अपने बेटे को बचपन से ही युद्ध कला और नेतृत्व के सबक सिखाए। उनकी माता, अरुमुगाथम्मल, एक धार्मिक और नैतिक महिला थीं, जिन्होंने वीरपांडिया को सत्य, न्याय और कर्तव्य की शिक्षा दी। कट्टबोम्मन को उनके बचपन में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, धनुर्विद्या और भाला फेंकने का कठोर प्रशिक्षण मिला था, जिससे उनमें योद्धा की नींव रखी गई।
उनका परिवार पंचलंकुरिची क्षेत्र में प्रभावशाली था और उनके पास जमीन और सेना का नियंत्रण था। वीरपांडिया के दादा, कट्टबोम्मन रुद्रप्पन, भी एक बहादुर पॉलीगर थे, जिन्होंने विजयनगर साम्राज्य के समय में अपने पराक्रम से नाम कमाया था। इस पारिवारिक विरासत ने वीरपांडिया को अपने लोगों की रक्षा करने और विदेशी शक्तियों के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी। उनका शिक्षा औपचारिक नहीं थी, लेकिन उन्होंने स्थानीय गुरुओं से तमिल साहित्य, इतिहास और नैतिकता का ज्ञान प्राप्त किया। उनके युवावस्था में ही उन्होंने गांव के लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए, जिससे उन्हें आगे नेतृत्व के लिए लोगों का समर्थन मिला।
वीरपांडिया कट्टबोम्मन का इतिहास
18वीं शताब्दी में, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने दक्षिणी क्षेत्रों पर आक्रमण करना शुरू किया। ब्रिटिशों ने पॉलीगरों के साथ संघर्ष किया। ईस्ट इंडिया कंपनी हमेशा उन पॉलीगरों और उनके क्षेत्रों पर नियंत्रण रखकर कर वसूलना चाहती थी। कट्टबोम्मन ने अपने क्षेत्र पर ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप, वीरपांडिया कट्टबोम्मन ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, जिसे 1799 का “प्रथम पॉलीगर युद्ध” कहा जाता है।
कट्टबोम्मन ब्रिटिशों के जाल से बचने में सफल रहे, लेकिन बाद में ब्रिटिशों ने घोषणा की कि जो कोई उन्हें पकड़कर लाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। लालची पॉलीगर इनाम के लिए लुभाए गए और कट्टबोम्मन को धोखा देने के लिए तैयार हो गए। इनाम के परिणामस्वरूप, पुदुकोट्टई के राजा एट्टाप्पन ने कट्टबोम्मन को धोखा दिया और उन्हें पकड़ लिया गया।
पकड़े जाने के बाद, कट्टबोम्मन के एक सहयोगी, सौंदर पांडियन की, क्रूरता से हत्या कर दी गई। सौंदर पांडियन का सिर दीवार पर पटककर तब तक मारा गया जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो गई। एक अन्य सहयोगी, सुब्रमण्या पिल्लई को भी फांसी दे दी गई और लोगों में डर फैलाने के लिए उसका सिर पंचलंकुरिची किले पर प्रदर्शित किया गया। कट्टबोम्मन के भाई उमैथुराई को जेल में डाल दिया गया। खुद कट्टबोम्मन को भी 16 अक्टूबर 1799 को कायाथार में सार्वजनिक स्थान पर फांसी दे दी गई।
कट्टबोम्मन की मृत्यु के बाद भी पॉलीगर और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। क्योंकि 1800 में, पॉलीगरों ने फिर से कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया और युद्ध एक साल तक चला।
अहो रुकिए, बंद करने से पहले, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में अपने विचार नीचे टिप्पणी करें। 1857 के विद्रोह से पहले वे एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। मुझे आशा है कि वीरपांडिया कट्टबोम्मन के इतिहास पर यह लेख आपके लिए उपयोगी रहा होगा। यदि ऐसा है, तो इस लेख को साझा करना न भूलें और भविष्य के अपडेट के लिए हमारी सूची में शामिल हों। धन्यवाद!

सैन्य रणनीति और युद्ध
वीरपांडिया कट्टबोम्मन के सैन्य पराक्रम उनकी बुद्धिमत्ता और साहस के प्रतीक थे। उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ते समय पारंपरिक और गुरिल्ला युद्ध रणनीतियों का प्रभावी उपयोग किया। उनकी सेना ने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों का लाभ उठाकर अचानक हमले किए, जिससे ब्रिटिश सेना को उनका सामना करना मुश्किल हो गया। 1799 में हुई पंचलंकुरिची की लड़ाई उनकी रणनीति का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस लड़ाई में उन्होंने ब्रिटिश सेना को बड़ी हार दी और अपने सैनिकों को स्थानीय भूगोल का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया था।
कट्टबोम्मन ने अपने सैनिकों में एकता और देशभक्ति की भावना जगाने के लिए कई प्रेरणादायक भाषण दिए। उन्होंने शस्त्रों का उपयोग कम होने पर भी दुश्मन पर विजय पाने के लिए बुद्धि चातुर्य का उपयोग किया। उनकी सेना में घुड़सवार और पैदल सैनिक शामिल थे, जिन्हें उन्होंने स्वयं प्रशिक्षित किया था। उन्होंने ब्रिटिशों के आपूर्ति मार्गों पर हमला करके उनके मनोबल को तोड़ दिया। उनकी रणनीति के कारण ब्रिटिशों को उनके खिलाफ बड़ी सेना भेजनी पड़ी, जिससे उनका नाम सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया।
मित्रता और विश्वासघात
वीरपांडिया कट्टबोम्मन ने अपने पड़ोसी पॉलीगरों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन उनके इन प्रयासों को मिश्रित सफलता मिली। उन्होंने मारुदु पांडियन नामक शक्तिशाली पॉलीगर के साथ गठबंधन किया, जिन्होंने उनकी मृत्यु के बाद भी ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। इस मित्रता से उन्हें सेना और संसाधनों का समर्थन मिला। हालांकि, कुछ पॉलीगरों ने ब्रिटिशों के लालच में आकर कट्टबोम्मन के साथ विश्वासघात किया। पुदुकोट्टई के राजा एट्टाप्पन ने ब्रिटिशों के इनाम के लिए कट्टबोम्मन को पकड़वा दिया, जिससे उनका पतन हो गया।
कट्टबोम्मन ने अपने मित्रों को एकजुट रखने के लिए कई बैठकें कीं और ब्रिटिशों के खिलाफ संयुक्त मोर्चा खोलने का आह्वान किया। उन्होंने अपने सहयोगियों को प्रेरित करने के लिए अपनी संपत्ति और प्रभाव का उपयोग किया। लेकिन, कुछ पॉलीगरों के स्वार्थ के कारण उनके ये प्रयास असफल रहे। फिर भी, उनके साहस और नेतृत्व ने कई लोगों को प्रेरित किया और उनका संघर्ष जारी रहा।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
वीरपांडिया कट्टबोम्मन का जीवन और बलिदान तमिल संस्कृति में अमर हो गया है। उनके शौर्य पर आधारित कई लोकगीत और कहानियाँ आज भी गाई जाती हैं। तमिल साहित्य में उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थान मिला है और उनके जीवन पर कई नाटक और फिल्में बनाई गई हैं। 1959 में रिलीज़ हुई “वीरपांडिया कट्टबोम्मन” फिल्म को उनके जीवन का एक प्रभावशाली चित्रण माना जाता है, जिसने उनकी कहानी घर-घर तक पहुँचाई।
उनके बलिदान ने तमिलनाडु के लोगों में स्वतंत्रता की ज्योति प्रज्वलित की और ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरणा दी। उनका नाम आज भी स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक माना जाता है। उनकी जयंती और बलिदान दिवस पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। उनके जीवन ने युवा पीढ़ी को देशभक्ति और त्याग की शिक्षा दी है।
विरासत और स्मारक
वीरपांडिया कट्टबोम्मन की स्मृति में तमिलनाडु में कई स्मारक बनाए गए हैं। पंचलंकुरिची में उनका भव्य पुतला स्थापित किया गया है, जो उनके शौर्य और बलिदान का प्रतीक है। कायाथार में, जहाँ उन्हें 16 अक्टूबर 1799 को फाँसी दी गई थी, वहाँ एक स्मारक बनाया गया है, जो हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करता है। इस स्मारक के पास उनके जीवन पर आधारित एक संग्रहालय भी है, जहाँ उनके हथियार, वस्त्र और अन्य व्यक्तिगत वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं।
हर साल उनके बलिदान दिवस पर, 16 अक्टूबर को, लोग बड़ी संख्या में एकत्र होकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। तमिलनाडु सरकार ने उनकी स्मृति को संजोने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें उनके नाम पर स्कूल और सड़कों का नामकरण शामिल है। उनकी विरासत आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय मानी जाती है।
Featured image credits: Manikandan.J, Source: Wikimedia