7 Story of Akbar Birbal In Hindi | अकबर बीरबल की कहानियाँ

by मार्च 9, 2024

परिचय

अकबर-बीरबल की कहानियाँ भारत में लोकप्रियता के कारन पाठकों के दिलों में स्थान रखती है। मैंने खुद बचपन में इन कथाओं को पढ़ा है और वो मेरी पसंदीदा किताबों में से एक थी। इसी कारण है कि मुझे लगता है, कि आपको यह श्रृंखला भी पसंद आएगी।

कहानियों में बीरबल और बादशाह अकबर का मुख्य पात्र हैं। बीरबल एक मंत्री थे और अकबर के नवरत्न (नौ रत्न) दरबार में एक सम्मानित पद पर थे। इसके अलावा, वह अकबर का सबसे करीबी और भरोसेमंद दोस्त था।

१. तीन सवाल

अकबर के नवरत्न दरबार का बीरबल नाम का मंत्री सम्राट अकबर का सबसे अच्छा दोस्त था। राज्य में सभी लोग उसे जानते थे। इससे दूसरे दरबारी मंत्रियों को बड़ी जलन होती थी। वह लंबे समय से निजी सलाहकार बनने का सपना देख रहे हैं। लेकिन ऐसा संभव नहीं था। बीरबल अकबर के विश्वसनीय निजी सलाहकार थे।

एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की चतुराई की प्रशंसा की। सभी ईर्ष्यालु मंत्री बहुत परेशान हो गए। बादशाह ने केवल बीरबल की प्रशंसा की।

“अब मैं इसे और नहीं झेल सकता,” विराट नामके मंत्रीने धीरेसे पासवाले मंत्री से कहा और वह मंत्री खड़ा हो गया। उन्होंने बादशाह से बोलने की अनुमति का अनुरोध किया।

मंत्री विराट ने, “गुस्ताखी के लिए माफ़ी हुजूर, पर मुझे बीरबल के क्षमता पर थोड़ा संदेह है। अगर उनके पास सभी जवाबों का जवाब होता है, तो में उनकी छोटी इम्तिहान लेना चाहूंगा, मुझे आशा है की मेरे पूंछे जाने वाले सवालों पर बीरबलजी को कोई ऐतराज नहीं होगा।”

अकबर बादशाहने बीरबल से पूँछा, “बीरबल, क्या तुम महान मंत्री विराटजी का संदेह दूर करने के लिए तैयार हो।”

बीरबल बोला, “जी बादशाह! में तैयार हूँ।”

मंत्री विराट ने कहा, “बीरबल महाशय, में आपको इस प्रतियोगिता में कुल मिलके सिर्फ तीन सवाल पूछूंगा। अब प्रतियोगिता रखी है तो मेरे ख्याल से कुछ पुरस्कार भी होना चाहिए। तो क्या में पुरस्कार क्या होना चाहिए इसके इस विषय में कुछ सलाह दूँ।”

त्यावर अकबर ने कहा, “बेशक, विराट महाशय आप बताये।”

तब विराट बोला की, “जो व्यक्ति इस प्रतियोगिता को जित लेगा बाहशाह उसे ही कल अपना नया निजी सलाहकार घोषित करेंगे।”

अकबरने कहा, “क्योंकि, अभी के मेरे निजी सलाहकार बीरबल है। में उनसे पहले पूछना चाहूँगा, क्या आपको विराटजी की शर्त स्वीकार है।”

बीरबल ने सम्राट से कहा, “हुजूर मुझे महाशय विराटजी की शर्त मंजूर है।”

मंत्री ने कहा, “मेरा पहला सवाल है की, आकाश में कुल मिलाके कितने तारे है?”

बीरबल ने अपने एक पहरेदार से दरबार दरबार में एक भेड़ लाने के लिए कहा। कुछ देर भेड़ को अदालत में पेश किया गया।

बीरबल और विराट जो अकबर के दरबार के मंत्री

बीरबल ने भेड़ की ओर इशारा किया और जवाब दिया, “भेड़ के बाल जितने हैं। उतने आकाश में तारे है। मेरे प्रिय मित्र मंत्री महाशय यदि चाहें तो भेड़ के बाल गिनकर देख सकते हैं।”

बीरबल के उत्तर ने सभी दरबारी फूंट-फूंटकर हंसने लगे।

तब मंत्री ने तब अपना दूसरा प्रश्न पूछा, “पृथ्वी का केंद्र कहाँ है?”

बीरबल ने चुपचाप एक छड़ी उठाई और जमीन पर दो रेखाएं एक दूसरे को काटते हुए खींच दीं। फिर उसने एक छड़ी ली और उसे दोनों रेखाओं के प्रतिच्छेदित बिंदु की ओर सूचित किया ओर बोला यही पृथ्वी का केंद्र है, “मंत्रिवर। चाहे तो मंत्री इसे स्वयं माप सकते हैं।”

विराट ने बीरबल की ओर देखकर मुस्कान देते हुए अपने अगले सवाल की ओर बढ़ा।

मंत्री ने कहा, “ठीक है, मेरे तीसरे प्रश्न का उत्तर दीजिए। दुनिया में कितने पुरुष और महिलाएं हैं?”

बीरबल ने जवाब देने से पहले अपना समय लिया और कहा, “सटीक संख्या की गिनती करना अभी थोड़ा मुश्किल है। यदि आप जैसे सभी मूर्खों को पृथ्वी से हटा दिया जाता है, तो हमारे पास एक सटीक संख्या होगी।”

इस तरह बीरबल मंत्री द्वारा दी गयी सभी सवालों का निवारण किया। बादशाह ने अकबर बीरबल की बहुत तारीफ की और उसे अपना निजी सलाहगार बनाए रखा।

कथा का बोध:

आप अपने प्रतिस्पर्धी को कभीभी कम आंकने की भूल मत करना। अगर ऐसा करते हो तो इसका मतलब आप में एक तो अति आत्मविश्वास और आपको प्रतिस्पर्धी के ताकत के बारे में अंदाजा नहीं है।

२. जादुई लाठियां

पुराने दिल्ली के पास नगर में एक अमीर व्यापारी रहता था। उनका फलता-फूलता व्यवसाय था और उन्होंने बहुत पैसा कमाया। वह महंगे सामानों से भरे एक बड़े घर में रहता था। एक दिन वह सुबह उठा और उसने पाया कि, उसका घर लूट लिया गया है। इससे व्यापारी बहुत दुखी हुआ।

उसने सारा दिन यह सोचकर बिताया कि यह कौन हो सकता है? मेरे नौकरों में से एक हो सकता है, लेकिन कौन? और, मैं उसे कैसे खोजूं? व्यापारी को मदद की जरूरत थी।

इसलिए, वह बीरबल के पास गया और उसे डकैती के बारे में बताया। “कृपया मुझे चोर को खोजने में मदद करें,” व्यापारी ने निवेदन किया। बीरबल चोर को पकड़ने में मदद करने के लिए तैयार हो गया। अगले दिन बीरबल व्यापारी के घर गए और सभी नौकरों को एक कमरे में बुला लिया।

उन्होंने उनमें से प्रत्येक नौकर से पूछा कि, क्या वे घर से कुछ भी चुराते हैं? सभी सेवकों ने उत्तर दिया कि, वे कभी भी घर से चोरी करने की हिम्मत नहीं करेंगे। बीरबल कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा। उसने किसी के ऊपर बिना चिल्लाते हुए, उसने सभी नौकरों के पास एक छड़ी दी।

बीरबल ने सबको कहा, “आपके पास दी छड़ी महान तांत्रिक द्वारा अभिमंत्रित है। कल सुबह तक जो व्यक्ति चोर है, उसकी छड़ी दो इंच बढ़ जाएगी।” इतना कहके, बीरबल ने उन्हें अपना काम खत्म करके घर जाने के लिए कहा। अगली सुबह सभी नौकर अपनी लाठी लेकर वापस एक कमरे में आ गए।

बीरबल ने उनकी लाठियाँ जाँचनी शुरू कर दीं। उसने पाया कि, एक नौकर के पास की छड़ी दूसरी छड़ियों की तुलना में दो इंच छोटी थी।

सभी नौकर हाथों में अपनी लाठियाँ पकड़े हुए

“यह रहा आपका चोर!”, बीरबल ने उस नौकर की ओर इशारा करते हुए कहा।

उस नौकर ने मालिक से क्षमा मांगते हुए सभी लुटे धन और मूल्यवान सामान लौटा दिया।

बाद में व्यापारी ने बीरबल से पूछा, “आपने चोर को कैसे पकड़ा?”

बीरबल मुस्कुराए और कहा, “असली चोर के मन में हमेश एक डर होता है। मैंने किसी छड़ी को अभिमंत्रित नहीं किया था। लेकिन, चोरों के मन में बैठे डर के कारन मैंने दी छड़ी सुबह तक दो इंच बढ़ न जाए यह सुनिश्चित करने के लिए, इस आशंका के कारन उसने छड़ी २ इंच काटकर छोटी कर दी। इसलिए उसने छड़ी काट दी और, इसी तरह वह पकड़ा गया।”

कथा का बोध:

जीवन में बिना किसी कष्ट के कुछ पाने के चक्कर में गलत मार्ग पर कभी न जाये।

जरुरत से ज्यादा चीजे और धनसंचय सीधा चोरों को आमंत्रण देता है। इसलिए जीवन में जितना जरुरी है उतना कमाओ, बिना रोक टोक के खर्चा करो और हो सके तो उदार हाथ से दूसरों की मदद करो।

३. कौन सबसे बड़ा है

राजा अकबर को अपने शाही बागानों से प्यार था। अपने खाली समय के दौरान, वह अपने बागानों की सैर करना पसंद करते थे। इसी तरह, एक अच्छा दिन राजा अकबर और बीरबल शाही बगीचों में घूम रहे थे और चर्चा कर रहे थे। उनकी चर्चा का विषय हाल ही में अकबर द्वारा उत्तर भारत पर हुई उनकी जित का था। अकबर पूरे उत्तर भारत पर शासन करना चाहता था, और खुद को उत्तरी भारत के सर्वोच्च स्वामी के रूप में स्थापित करना चाहता था।

चर्चा के दौरान, अकबर के दिमाग में एक सवाल आया और उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल कौन सबसे बड़ा है?”। बीरबल समझ गया कि, अकबर चाहता है कि वह अपने हाल ही में हुए विजय के बारे में बोले और उसके काम की प्रशंसा करे।

बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया, “बादशाह, एक बच्चा सबसे बड़ा है”।

राजा अकबर बीरबल के जवाब से खुश नहीं हुआ और उसे अपनी बात साबित करने के लिए कहा। बीरबलने अपनी बात साबित करने के लिए अगले दो दिनों का समय मांगा और बादशहने भी बीरबल को उसकी बात सिद्ध करने के लिए समय प्रदान किया।

अपनी बात को साबित करने के लिए बीरबल ने अपने दोस्त से मदद मांगी। उसके दोस्त का एक प्यारा बेटा था, जो २ साल का था, और बीरबल उस बच्चे को महल में ले जाना चाहता था। उसका दोस्त सहमत हो गया, और बीरबल बच्चे को दरबार में ले आया। बादशाह अपने दरबार में ऐसे मनमोहक बच्चे को देखकर बहुत खुश हुआ, और बीरबल को बच्चे को अपने पास लाने के लिए कहा।

छोटा बच्चा अकबर की मूंछें खींचते हुए

अकबर बच्चे को ले गया, और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। उस छोटे से बच्चे ने राजा अकबर की सारी चिंताओं को भुला दिया। बादशाहने इस प्यारे से छोटे बच्चे के साथ एक अद्भुत समय बिताया था। खेलते समय अचानक, बच्चे ने सम्राट की मूंछ खींची और सम्राट बहुत क्रोधित हुआ। वह दर्द में चिल्लाया, “बीरबल, तुम इस कुत्सित बच्चे को मेरे दरबार में क्यों ले आए? क्या वह मुझसे वाकिफ नहीं है? उसे एक बार में निकाल दो नहीं तो मैं उसे सजा दूंगा।”

बीरबल ने अपनी बात साबित करने के लिए यह सही समय माना। उन्होंने कहा, “जहाँपनाह, इस समय पर यह बच्चा आपसे बड़ा है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह प्यारा सा बच्चा आपकी मूँछे खींचने की हिम्मत कैसे जुटा पाता। अगर उसकी जगह पर कोई और आपको चोट पहुँचाने की हिम्मत करता, तो वह ज़िंदा नहीं खड़ा होता।”

“इस बच्चे के अलावा यहाँ किसी को भी सम्राट की मूँछे खींचने की हिम्मत नहीं है ”।

अकबर को बीरबल के समझाने पर यकीन हुआ क्योंकि उसकी कही बात में सच्चाई थी। न केवल वह बच्चा जीवित था, बल्कि वह मुस्कुरा भी रहा था साथ में कुछ शब्दों को गुनगुनाने हुए घूम रहा था। अल्लेले… प्यारी बच्ची चुनो !! बीरबल ने चालाकी से अपनी बात फिर से साबित कर दी थी। बीरबल की व्याख्या सुनने के बाद, राजा अकबर शांत हो गए, उन्होंने छोटे बच्चे को गले लगाया और बीरबल की प्रशंसा की।

कथा का बोध:

जीवन में आप भलेही कितने ही महान या बड़े बन जाओ, पर जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है, जब आप खुदसे ज्यादा तवज्जो किसी और को देने लगते हो। तब आपकी नजर में वह शख्स महत्वपूर्ण बन जाता है, और आपको बिना पता चले वह आपसे बड़ा बन जाता है।

४. बीरबल का स्वर्ग प्रस्थान

चतुर और मजाकिया व्यक्तित्व होने के कारन बादशाह अकबर बीरबल को बहुत पसंद करता था। जिसके वजह से अकबर के राज्य में कुछ लोगों में नाराजी थी। बीरबल से ईर्ष्या के कारन वे सभी उससे छुटकारा पाना चाहते थे। लेकिन अब तक की उनकी सभी योजनाएँ विफल रही थी।

इसलिए, अब उन मंत्रियों ने एक नकली साधु को साथ में लेकर बीरबल का पूरी तरह से काम तमाम करने के लिए योजना बनायीं। मंत्रियो में एक उस्ताद अली खान थे उन्होंने दरबार में कहा, “बादशाह का इकबाल बुलंद हो..”

“हुजूर क्या आप जानते है, की हमारे राज्य में एक चमत्कारी सूफी बाबा आये है। वे किसी को भी जन्नत की सैर कराके वापस ला सकते है।”

क्योंकि, सब लोग जानते थे की बादशाह खुद राज्य का कार्यभार छोड़कर कही नहीं जा सकते थे। और वे जाने के अगर लिए तैयार हो भी गए, तो दरबारी मंत्री की सलाह से वे उनकी तरफ से किसी और को भेजने के लिए कहते। वह कोई और बीरबल ही होनेवाला है, इस बात को सब योजनकर्ताए अच्छेसे जानते थे।

बादशाह अकबर जिज्ञासु भाव के साथ, “लेकिन ऐसा कैसे संभव है। किसी भी व्यक्ति को मरने के बाद ही खुदा जन्नत बख्शता है।”

उस्ताद अली अपने जवाब में कहता है, “हुजूर लोग कहते है की उनके पास खुदा ने दी सिद्धियाँ है। जिसके चलते वे व्यक्ति को स्वर्ग भेजते है और उसे वापस भी लाते है।”

बादशाह को लगा की स्वर्ग में हमारे दादा-परदादा को मिलकर उनको हाल पूँछना चाहिए।

यह सोचकर बादशाहने दरबार में उपस्थित अपने निजी सलाहकार बीरबल को बुलाया। और दरबार की कार्यवाही बरखास्त कर दी।

बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, वैसे तो इस काम के लिए मुझे जाना चाहिए, पर क्योंकि मुझपर राज्य की जिम्मेदारी है। इसलिए में मेरे सबसे विश्वसनीय व्यक्ति होने के नाते तुम्हे इस काम के लिए चुन रहा हूँ। क्या तुम मेरे तरफ से जन्नत की यात्रा करके, मेरे अब्बा वालिद हुमायूँ और परदादा बाबर को उनके हाल पूँछके, उनसे उन्हें किसी तरह की तकलीफ तो नहीं इस बात की जाँच करोगे?”

बीरबल ने कुछ सोचकर बोला, “जी जहाँपनाह लेकिन मेरी छोटीसी शर्त है।”

बादशाह ने झट से पूँछा, “क्या है तुम्हारी शर्त? तुम्हे कुछ उपहार, जमीन, हीरे-जवाहरात, या तनख़्वाह बढ़ाके चाहिए?”

बीरबल बोला, “नहीं हुजूर, आपकी मेहेरबानी से मेरे पास सब कुछ है। मैं सिर्फ मेरे सभी रिश्तेदारों से मिलकर मेरी जन्नत की यात्रा के बारे में बताना चाहता हूँ। जिसके लिए मुझे १५ दिन चाहिए, जिसके बाद में जन्नत जाने के लिए तैयार हूँ।”

बादशाह ने कहा, “बिलकुल तुम्हे और भी किसी चीज की अगर जरुरत हो तो बता देना।”

बीरबल सर हिलाते हुए कहा, “जी जरूर!”

बीरबल से बात करने के बाद अकबर वहाँ से चला गया।

आखिरकार वह दिन आ गया, उस्ताद अली खान ने योजना के मुताबिक उनके द्वारा बनाये उस बाबा को भी बुलाया। सभी मंत्रियों ने बताये मुताबिक वह ढोंगी बाबा ने तय हुए जगह पर एक गड्डा खुदवाया।

उसमे बीरबल को लेटाया और उस ढोंगी सूफी बाबा ने झूठी मंत्र विधि आरम्भ कर दी। जिसके बाद उन्होंने बीरबल के ऊपर मिट्टी डालते हुए उस दफना दिया।

बीरबल ने स्वर्ग जाने की तैयारी के लिए ही १५ दिन का समय माँगा था। उस समय दौरान, उन्होंने पॉंच कामगार बुलाकर और उसे जहाँ से स्वर्गगमन की विधि होने वाली है वहाँ से अपने घर तक एक बड़ी सुरंग बनायीं थी।

बीरबल ने बड़ी चतुराई से जहाँ यह गड्डा खोदा गया, उसी के नीचे से यह सुरंग खुदवाई थी। लगभग १३ दिन इस सुरंग को बनाने में लगे थे। बीरबल ने खुद उस सुरंग से घर तक का रास्ता तय करके देखा था। इसलिए, उन्होंने जब मिट्टी डालके उन्हें दफनाया तब कुछ ही देर में वह सुरंग से घर तक गया।

इसके व्यतिरिक्त बीरबल ने छह महीनो का राशन और खाद्यसामग्री घर में लेकर रखी। ढोंगी सूफी बाबा द्वारा इस स्वर्ग भेजने की विधि के दिन से छह महीनों तक बीरबल घर के कमरे में ही रहे।

छह महीनों बाद, वे वापस दरबार लौटे तब अकबर ने उससे पूँछा, “क्या मेरे सब पूर्वज कुशलमंगल है?”

तब बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “आपके पिता मुझे देखकर खुश हुए। बाकि सब तो ठीक है महाराज पर उनके पास धार्मिक विधियाँ करने के लिए कोई नहीं है।”

“हमने अच्छा समय बिताया। मैंने उन्हें अच्छी तरह से सेवा दी, वे बहुत खुश हुए और उन्होंने मुझे आपके पास लौटने के लिए कहा।”

“उन्होंने कहा, जिस सूफी बाबा ने आपको जन्नत तक भेजा उन महाशय से बेहतर धार्मिक कार्य भला कौन कर सकता है? इस लिए उन्हें तुरंग जन्नत भेजे।”

फिर बीरबल ने अपनी पूरी योजना और साथ में दरबारी और ढोंगी बाबा की सच्चाई बताई। फिर अकबरने बीरबल को उपहार और पदोन्नति करके पुरस्कृत किया। बीरबल से छुटकारा पाने की अपनी कुटिल योजना के लिए अपने कुछ दरबारी मंत्री और ढोंगी सूफी बाबा को जेल में डाल दिया।

ईर्शालु व्यक्ति न खुद आगे बढ़ पता है न दुसरो को आगे बढ़ने देता है। इसलिए, जितना हो सके ऐसे व्यक्तियों सतर्क और उनसे से दूर रहे।

५. बीरबल और डेयरी व्यापारी

सम्राट अकबर के राज्य में बहुत समय से, दो डेयरी व्यापारी रहते थे। वे दोनों अच्छे दोस्त और पड़ोसी थे।

एक दिन डेयरी व्यापारियों में से एक को तत्काल पैसे की जरूरत थी। वह अपने दोस्त के पास गया और उससे पूछा” कि, क्या वह १०० सोने के सिक्के उधार दे सकता है? “मैं इसे एक हफ्ते में वापस करने का वादा करता हूँ, उसने अपने दोस्त से कहा।”

डेयरी व्यापारी दूसरे डेयरी व्यापारी को सिक्कों का थैला दे देते हुए

एक हफ्ता बीत गया और फिर दूसरा। लेकिन पैसे उधार लेने वाले डेयरी व्यापारी ने अपना वादा नहीं निभाया।

दोस्त ने पूँछने पर उसने कहा, “क्या पैसा कहा? मैंने आपसे कभी कोई पैसा उधार नहीं लिया है!” उसका दोस्त, दूसरा डेयरी व्यापारी बहुत परेशान हो गया और न्याय पाने के लिए अकबर के दरबार में गए।”

अकबर और बीरबल ने डेयरी व्यापारी से सुना जिसने अपने दोस्त से पैसे उधार लिए थे।

मामले की सुनवाई के बाद दोनों डेयरी व्यापारी को भी अदालत में बुलाया गया। बीरबल ने दोनों डेयरी व्यापारियों को मक्खन के पांच डिब्बे दिए।

बीरबल ने कहा, “सभी डिब्बे का वजन १०० ग्राम है। अब जाओ और प्रत्येक सप्ताह में मक्खन की गुणवत्ता का स्वाद चखो और मुझे एक सप्ताह में रिपोर्ट करो।”

बीरबल ने सोने के सिक्कों के बारे में कुछ नहीं कहा जो उन्होंने दो डिब्बे में रखे थे!

डेयरी व्यापारी घर चले गए। मक्खन का परीक्षण करते समय, डेयरी व्यापारियों में से दूसरे ने सोने का सिक्का पाया। वह बीरबल के पास आया और उसे लौटा दिया। बीरबल प्रसन्न हुआ और उसके कान में कुछ फुसफुसाया। जबकि, पहले व्यापारी ने इसे छिपाने के बजाय अपने बेटे को दे दिया।

एक हफ्ते के बाद, दोनों व्यापारी परीक्षण के लिए दिए गए पाँच डिब्बों के साथ वापस अदालत में आए। बीरबल ने अपने आदमियों को फिर से डिब्बे तौलने को कहा। वह जानता था कि दो डिब्बे १०० ग्राम से कम वजन के होंगे। जबकि डेयरी व्यापारियों में से एक ने सोने का सिक्का लौटाया, दूसरे ने नहीं दिया।

“दो डिब्बे १०० ग्राम से कम हैं। क्यों?” उसने व्यापारियों से पूछा।

दूसरे डेयरी व्यापारी ने उन्हें बताया कि, डेयरी व्यापारी ने बीरबल को सोने का सिक्का लौटाया था। जिसके कारन मेरे एक डिब्बे का वजन १०० ग्राम से कम है।

पहले डेयरी व्यापारी को पता था की उसने सिक्का बीरबल को वापस लौटने के बजाय उसने अपने बेटे को दे दिया था। पर उसने अपने डिब्बे में कोई सिक्का न होने का दावा किया।

लेकिन बीरबल जानता था की वह झूट बोल रहा है।

तब पहले व्यापारी से बीरबल ने कहा, “महाशय, मैंने खुद अपने हाथों से तुम दोनों के डिब्बों में सिक्के डाले थे।”

तब बीरबल ने पहले व्यापारी के बेटे के साथ उसने सोने के सिक्के को अदालत में लाने के लिए सैनिकों को भेज दिया।

सैनिक सोने का सिक्का लेकर अदालत में लौट आए। डेयरी व्यापारी को पकड़ा गया!

“आपने मुझे एक सोने के सिक्के के लिए धोखा दिया, आप सौ सोने के सिक्कों के बारे में कैसे ईमानदार हो सकते हैं?”, बीरबल ने गुस्से से पूछा।

तब शर्मिंदा होते हुए पहला व्यापारी अपनी गलती मानता है।

बीरबल ने पहले डेयरी व्यापारी को दंडित किया और उसे अपने दोस्त और दूसरे डेयरी व्यापारी को उधार दिए गए पैसे का दोगुना भुगतान करने के लिए कहा। डेयरी व्यापारी ने अपने दोस्त को धोखा देने के लिए २०० सोने के सिक्के दिए। इस तरह बीरबल ने न्याय करके यह मामला बंद कर दिया।

कथा का बोध:

कभीभी ऐसा काम ना करो जिसके वजह से आपको सबके सामने शर्मिंदा होना पड़े।

६. बीरबल और द ब्लाइंड मेन

एक दिन सम्राट अकबर की बेगम ने बादशाह से कहा, “जहापनाह! मेरी एक इच्छा है की, मैं राज्य के सभी नेत्रहीनों को चांदी का सिक्का भेंट करूँ।”

बादशाह ने तुरंत, “राज्य के सभी अंधे आदमियों की एक सूची तैयार करने का आदेश दिया।”

एक सप्ताह बाद, अकबर के सामने सूची प्रस्तुत की गई। उन्होंने बीरबल को नामों की जांच करने और चांदी के सिक्कों के वितरण की योजना बनाने के लिए सूची सौंप दी।

बीरबल ने सूची देखी। उन्होंने नामों के ऊपर जाकर कहा, “मेरी महिमा सूची अधूरी है। क्योंकि, राज्य में अंधे लोगों की संख्या सूची में सूचीबद्ध किये नामों की तुलना में कई अधिक है।”

“क्या आपको यकीन है, बीरबल। मैं तुम्हें चुनौती देता हूँ, कि सूची को अपूर्ण साबित करके दिखाओ।”

बीरबल ने अकबर की चुनौती को आसानी से स्वीकार कर लिया।

अगले दिन बीरबल ने व्यस्त मुख्य बाजार के चौराहे पर एक तंबू गाड़ दिया। वह वहीं एक पुरानी खाट लेकर बैठ गया, और उसकी मरम्मत करने लगा। जल्द ही लोगों ने बीरबल से पूछा, “महाशय, आप यहाँ क्या कर रहे हो?”

बीरबल बाज़ार में खाट बुनते हुए

बीरबल बुद्धिमान व्यक्ति एवं एक मंत्री होने के बावजूद, हर कोई उसे बाजार में खाट बुनते देख देखकर हैरान था। यह बात कुछ ही समय में पूरे राज्य में फैलने में देर नहीं लगी। खबर राजा के पास मिलने पर उन्होंने तुरंत बीरबल को दरबार में बुलाया।

दरबार पहुँचने पर, बादशाह अकबर बोला, “बीरबल तुम, वहाँ बाजार में क्या कर रहे थे?”

पूरे दिन, बीरबल उन सभी लोगों सूची में नाम लिख रहा था, जिन्होंने उनसे ऐसा सवाल पूछा था। इसलिए, जब अकबर ने भी पूछा, तो बीरबल ने बादशाह का भी नाम अपनी सूची में डाल दिया। फिर उसने उठकर अकबर को उन अंधे लोगों की सूची दिखाई, जो उसने उस दिन बनाई थी। अकबर द्वारा बनाई सूची से यह बहुत बड़ी थी।

अकबर ने जाँच करने पर अकबर ने उस पर अपना नाम भी पाया आखिरी स्थान पर पाया। उलझन में, उसने बीरबल से इसका कारण पूछा।

बीरबल ने विनम्रता से जवाब दिया, “जहापनाह! आप आज अंतिम व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझसे पूछा कि मैं सड़क के किनारे क्या कर रहा हूँ। मैं एक खाट बुन रहा था। हर कोई देख सकता था, फिर भी उन सबने पूछा।”

अकबर द्वारा दी गयी चुनौती को बीरबल ने जित लिया था।

बीरबल की जित स्वीकार करते हुए बादशाह ने कहा, “तुम सही कह रहे हो, बीरबल! मुझे मानना​ ​पड़ेगा, राज्य में अंधे लोगों की संख्या वाकही में अधिक है! तुम सही थे!”

कथा का बोध:

कभी-कभी सच सामने होकर भी हमें दिखाई नहीं देता, इसलिए हमेशा अपने आँखे और कान खुले रखना जरुरी है।

७. जो बुंदसे गयी वो हौद से नहीं आती

सम्राट अकबर के साम्राज्य की सीमाएँ दूर-दूर तक फैली हुई थीं। उस वर्ष सम्राट का जन्मदिन था। पूरे राजमहल को फूलों से सजाया गया, राजधानी दिल्ली की सभी सड़कों को सजाया गया, गरीबों में मिठाइयाँ बाँटी जा रही थी।

बादशाह स्वयं दरबारियों को इत्र लगाकर उपहार दे रहे थे। इस बार एक अनोखी घटना घटी, एक छोटे से राज्य के राजा को इत्र लगाते समय सम्राट के इत्र की एक बूंद कालीन पर गिर गयी।

बादशाह ने तुरंत इत्र की उस बूंद को अपने उंगली पर लेने की कोशिश की। लेकिन उसके हाथ में कुछ नहीं आया और वह बूंद कालीन में अवशोषित हो गयी।

बीरबल, जो पासवाले आसन पर बैठे थे, इतने बड़े सम्राट को इत्र की एक बूंद के लिए संघर्ष करते हुए वह देख रहे थे।

बादशाह भी तुरंत बीरबाल के मन की बात समझ गया जिससे उसका चेहरा उतर गया और उसको अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने मन में निश्चय किया कि, कल वह कुछ ऐसा करेगा जिससे बीरबल आज का दिन हमेशा के लिए भूल जायेगा।

लोग इत्र के शाही हौद से पात्रों में भरकर इत्र ले जाते हुए

अगले ही दिन, अकबर ने सभी के देखने के लिए महल के बाहर इत्र से भरा एक बड़ा हौद खोल दिया। उन्होंने सभी सार्वजनिक स्थान पर घोषणा करावा दी कि, सम्राट के महल के बाहर सभी के लिए इत्र से भरा हौद खुला हैं और कोई भी जितना चाहे उतना इत्र ले जा सकता है।

घोषणा सुनने के बाद बीरबल, जो दरबार के लिए निकले थे, जल्द ही यह देखने के लिए महल में पहुँचे कि शाही महल में क्या हो रहा है।

वहा पहुंचते ही बीरबल ने सबसे पहले देखा कि, महल के बाहर कई लोग बर्तनों में इत्र लेकर जा रहे थे और बादशाह की स्तुति कर रहे थे।

बादशाह को जैसे ही पता चलता है कि, बीरबल राज आवास में आया है, तो वह बाहर आ जाता है। वे बीरबल को पास बुलाकर उससे कहते हैं, “क्यों बीरबल, कैसा लग रहा है, मजा तो आ रहा है ना?”

बीरबल ने एक पंक्ति में उत्तर दिया, “बादशाह, जो बुंदसे गई वो हौदसे वापस ​​नहीं आती!”

उसका उत्तर सुनकर बादशाह एकदम से नरम पड़ गया और लज्जित अवस्था में दरबार की ओर चला गया।

कहानी का अर्थ:

एक बूँद से खोया हुआ सम्मान इत्र के हौद से भी वापस नहीं आ सकता।

समापन

मुझे आशा है कि, ये अकबर बीरबल की कहानियाँ आपकी रूचि अनुरूप होंगी। यदि, आप अकबर और बीरबल की कहानियों पर एक नई श्रृंखला चाहते हैं, तो कृपया इस लेख को आपके पसंदीदा सोशल चैनल पर शेयर करें। मैंने केवल ५० शेयर्स का लक्ष्य रखा है, जब शेयर्स ५० पुरे हो जायेंगे, तब में नई श्रृंखला लेकर आऊंगा।

लेखक के बारे में

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आशीष सालुंके

आशीष एक कुशल जीवनी लेखक और सामग्री लेखक हैं। जो ऑनलाइन ऐतिहासिक शोध पर आधारित आख्यानों में माहिर है। HistoricNation के माध्यम से उन्होंने अपने आय. टी. कौशल को कहानी लेखन की कला के साथ जोड़ा है।

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