विश्व गुरु संत तुकाराम महाराज की जीवनी

by नवम्बर 28, 2023

परिचय

साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संतों का योगदान महत्वपूर्ण है। इसमें भक्ति अभंग की हम बात करे तो संत तुकाराम महाराज ये एक समीकरण बन गया है, इसकी वजह भी खास ही है। पिछली तीन शताब्दियों से उनके भजनों और भक्ति अभंगों ने आध्यात्मिक जगत के वातावरण को जिन्दा कर दिया है। मराठी लोग उन्हें प्यार से तुकोबा या तुकोबाराया कहते हैं।

उन्होंने लोगों को विट्ठल भक्ति की प्रेरणा भी दी। उनके प्रयासों से भक्ति आंदोलन को गति मिली।

उन्होंने कीर्तन करके सामाजिक जागरूकता के माध्यम से भूत दया, सात्विक एवं सरल जीवन शैली, ईमानदारी, सकारात्मक एवं शुद्ध सोच की शिक्षा दी। अत: भक्ति आन्दोलन में उनकी राह लम्बी थी। उन्होंने वारकरी संप्रदाय का भी प्रचार किया और अपने समय में इस संप्रदाय को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाया।

ऐसा माना जाता है कि, एक दिन उनके सपने में चैतन्य साधु आए, जिन्होंने “रामकृष्ण हरि” यह गुरुमंत्र दिया।

कैसे एक आम आदमी संसार में रहते हुए संत बन गया। उन्होंने सबके मन में यह विश्वास दिलाया कि अटल भक्ति, सदाचार का पालन करके आत्म-ज्ञान और आत्म-विकास प्राप्त किया जा सकता है।

तुकाराम महाराज का जन्म देहू का जन्म १६०८ में महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर के पास एक छोटे से गाँव में हुआ था। हिन्दुइस्मफॅक्ट्स के अनुसार, उनका पूरा नाम तुकाराम बोल्होबा अंबिले (मोरे) था।

संत तुकाराम महाराज मंदिर, देहु, महाराष्ट्र
संत तुकाराम महाराज मंदिर, देहु, महाराष्ट्र

तुकाराम महाराज का परिवार

वह मराठा जाति कुनबी यानी किसान परिवार से थे। संत तुकाराम महाराज के पिता का नाम बोल्होबा और माता का नाम कनकई था। ब्लॉग द फेमस बायोग्राफी इन्फो के अनुसार, वह पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे। साथ ही मुक्ताबाई और तुकाबाई उनकी दो बहनें थीं।

प्रश्नोत्तर मंच क्योरा पर शंकर बांगर द्वारा लिखे गए एक उत्तर के अनुसार, सावजी उनके बड़े भाई थे और कान्होबा उनके छोटे भाई थे।

आध्यात्मिक गतिविधियों में परिवार का सहयोग

तुकाराम महाराज के आध्यात्मिक कार्यों में उनके परिवार ने उनका बहुत सहयोग किया। उन्होंने दो बार शादी की और उनकी दोनों पत्नियों ने आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद आध्यात्मिकता के प्रति उनके जुनून को आगे बढ़ाने में मदद की।

उनकी सीख और सोच

उनके विचार के अनुसार, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति सात्विक जीवन जीने के लिए प्रेरित होता है। अक्सर सात्विक जीवन जीने वाले लोग भक्ति का मार्ग अपनाते हैं। वे लोग धीरे-धीरे मनुष्य के छह विकारों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं और पूर्ण रूप से भगवान के प्रति समर्पित हो जाते हैं। अंततः ये लोग प्रभुत्व और मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

कई प्रकार के महाराष्ट्रीय साहित्य तुकाराम महाराज की रचनाओं पर आधारित हैं। भारतीय साहित्य पर उनका प्रभाव देखा जा सकता है। उनकी शिक्षाएँ और विचार हर उम्र के लोगों पर लागू होते हैं। इसलिए वैष्णवों ने अपनी परंपराओं के माध्यम से आज भी अपनी विरासत को संरक्षित रखा है।

विवाहित जीवन

संत तुकाराम का वैवाहिक जीवन कठिन था। उन्होंने रख्माबाई से विवाह किया, जो एक धार्मिक अनुयायी थीं। कुछ समय बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तुकाराम महाराज ने इस बालक का नाम “संथु” रखा। उन्होंने तुकाराम महाराज को उनके आध्यात्मिक कार्यों में बहुत सहयोग दिया।

रखमाबाई से आध्यात्मिक समाधान के लिए प्रोत्साहन

इस समय मुझे उनके बारे में एक मशहूर घटना याद आती है, एक बार तुकाराम महाराज ने दैवीय मार्गदर्शन प्राप्त होने तक उपवास करने का कठोर संकल्प लिया। लेकिन कई दिन बिना किसी दैवीय मार्गदर्शन के बीत गए।

आख़िरकार तुकोबा ने तंग आकर उपवास तोड़ने का फ़ैसला किया। फिर उन्होंने अपनी पत्नी रख्माबाई से भोजन की थाली लाने को कहा। उस समय, रखमाबाई गन्ने के टुकड़े लाती हैं और उन्हें आध्यात्मिक भक्ति सिखाते हुए उपवास जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

तुकाराम महाराज के जीवन का सबसे बुरा दौर

१६३० से ३२ के बीच अचानक एक भयानक अकाल में उनकी पत्नी और बेटे की मृत्यु हो गई।

परिवार के निधन से तुकाराम महाराज पर बहुत प्रभाव पड़ा। उन्होंने खुद को समाज से अलग कर लिया। अब वह अपना अधिकांश समय अध्यात्म को समर्पित करते हैं और धार्मिक चिंतन में लगे रहते हैं। उन्होंने खुद को पूरी तरह से भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया।

संत तुकाराम महाराज
संत तुकाराम महाराज

आत्मनिरीक्षण की इस अवधि के दौरान, उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया का त्याग किए बिना भक्ति करना बेहतर है। ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति के कारण वह धीरे-धीरे कष्टों से बाहर आ गये।

तुकाराम महाराज की घर वापसी

इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली। उनकी दूसरी पत्नी का नाम अवलाई जीजाबाई था। उनके चार बच्चे हुए जिनका नाम रखा गया उनमें महादेव, विट्ठल, नारायण नामक तीन पुत्र और भगीरथी नामक एक पुत्री थी।

अवलाई जीजाबाई को आध्यात्मिक चीज़ों की तुलना में सांसारिक चीज़ों में अधिक रुचि थी। फिर भी, उन्होंने तुकाराम महाराज को कष्ट से उबरने और उनकी आध्यात्मिक प्रगति जारी रखने में समर्थन दिया।

तुकाराम अंबिले (मोरे) से संत तुकाराम तक

विठ्ठल के प्रति उनकी निष्ठा और परिवार के समर्थन ने उन्हें समाज में एक आध्यात्मिक नेता, एक महान संत और एक कवि के रूप में पहचान दिलाई। उनके बाद की पीढ़ियों ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। एक ऐसी विरासत जिसे उनकी पीढ़ी ने आज तक कायम रखा है। वर्तमान में उनके वंशजों को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त है और वे आज भी महाराष्ट्र के देहू में रहते हैं।

भगवान की सेवा में आनंद

एक युवा व्यक्ति के रूप में, उन्होंने शुरुआत में कुछ समय तक एक दुकानदार का काम किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने अपना धार्मिक अभ्यास जारी रखा। इस दौरान उनकी पहली पत्नी और बेटे की मृत्यु हो गई। इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं ने उन्हें व्यक्तिगत स्वार्थ और सांसारिक सुख-दुख से परे देखने की दृष्टि दी। उन्हें एहसास हुआ कि भगवान विठ्ठल की भक्ति में ही आनंद है और भगवान विठ्ठल में उनका विश्वास मजबूत हो गया।

तुकाराम महाराज की विठ्ठल भक्ति

तुकाराम महाराज को भगवान विठ्ठल की भक्ति बहुत पसंद थी और बचपन से ही वे आध्यात्मिक कार्यों में रुचि रखते थे। एक किसान होने के नाते, खेतों में जाने के बाद भी, वह अपना अधिकांश समय ध्यान, प्रार्थना और कीर्तन में बिताते थे।

पंढरपुर के भगवान विठ्ठल

भगवान कृष्ण के एक रूप भगवान विठ्ठल की पूजा महाराष्ट्र में की जाती है। उनके नाम को भगवान विठ्ठल कहने के पीछे एक प्रसिद्ध भक्त कुंडलिक की कहानी है। ऐसा माना जाता है कि, भगवान विठ्ठल की पूजा द्वारपारा युग से महाराष्ट्र में की जाती आ रही है। पंढरपुर का विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर भी सैकड़ों वर्षों से चली आ रही महाराष्ट्र की महान संस्कृति और भक्ति आंदोलन की छाप छोड़ता है।

पंढरपुर में भगवान विठ्ठल का चित्र
पंढरपुर में भगवान विठ्ठल का चित्र

संत तुकाराम महाराज द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध अभंगरचना

दुकानदारी का व्यवसाय छोड़कर वे खेती में लग गये और अपना अधिकांश समय भगवान की सेवा में लगाने लगे। इसी अवधि के दौरान उन्होंने विश्व प्रसिद्ध भक्ति अभंगों की रचना की।

एक भारतीय संत और कवि के रूप में जाने-जाने वाले तुकाराम महाराज आज ज्यादातर अपनी महान शिक्षाओं और अभंगों के कारन जाने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में ५००० से अधिक अभंग लिखे, जो अब मराठी साहित्य की उत्कृष्ट कृति मानी जाती है।

ये भक्ति कविताएँ भगवान विठ्ठल के प्रति उनकी भक्ति, आत्म-बोध, विनम्रता और प्रेम की भावना को दर्शाती हैं। उनकी निःस्वार्थ भक्ति की बहुत चर्चा हुई। उन्होंने लोगों को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

संत तुकाराम महाराज और छत्रपति शिवाजी महाराज की एक लोकप्रिय कहानी

पुणे के निकट देहू नामक स्थान उस समय राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन था। जब शिवराय को उनके बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा, “कोई भी व्यक्ति निःस्वार्थ नहीं हो सकता..” इसलिए उन्होंने उपहार के रूप में तुकाराम महाराज के घर पर रत्नजड़ित सोने के आभूषणों से भरा एक बक्सा भेजा।

तब अहिल्याबाई जीजाबाई और बच्चे बहुत प्रसन्न हुए। उन सभी ने तुरंत गहनों को पहनकर देखा। कुछ देर बाद जब तुकाराम महाराज घर आए तो उन्होंने यह सब देखा। फिर उन्होंने घर वालों को प्यार से समझाया, “यह हमारे लिए ठीक नहीं है। आप सबने जो पहना है वो जहर है, जो मनुष्य के दिमाग को भ्रमित कर देता है, इसलिए इसे निकाल दो।”

उनकी पत्नी और बच्चों ने भी उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए सारे गहने उतार दिए। तुकाराम महाराज ने सारे आभूषण एक बक्से में रख दिये और वापस कर दिये। तो वास्तव में ऐसा कौन सा संत है, जिसके मन में सांसारिक चीजों के प्रति रत्ती भर भी वासना नहीं है। ऐसे संत से मिलाने शिवाजी महाराज स्वयं देहू गए थे।

जब वे पहुंचे तो तुकाराम महाराज एक मंदिर में कीर्तन कर रहे थे। उनका कीर्तन सुनकर शिवराय मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने तुकाराम महाराज के पैर पकड़कर उनसे संन्यास ले कर अपना शेष जीवन उनकी और भगवान की सेवा में बिताने की इच्छा व्यक्त की।

लेकिन, तुकाराम महाराज ने छत्रपति शिवराय को समझाते हुए कहा कि, “आप क्षत्रिय और एक राजा हैं, सभी लोग आप पर निर्भर हैं। साथ में सभी प्रजा की ज़िम्मेदारी आपकी है। इसलिए, कर्तव्य और दुनिया का त्याग किए बिना संसार करते हुए साथ-साथ भगवान की सेवा करना ही आपके लिए उचित होगा।

संत तुकाराम पुष्पक विमान पर सवार होकर स्वर्ग जाते हुए
संत तुकाराम पुष्पक विमान पर सवार होकर स्वर्ग जाते हुए दर्शाता चित्र

तुकाराम महाराज की शिक्षा सुनने के बाद, शिवराय ने उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु माना। इसके अलावा उन्होंने अपने प्रजा की रक्षा करते हुए आध्यात्मिक कार्य और ईश्वर की सेवा जारी रखी।

निष्कर्ष

संत तुकाराम महाराज, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण संत माने जाते हैं। उनका जीवन सकारात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा देता है। उनके अभंगों ने एक भक्तिपूर्ण विचारधारा और जीवनशैली विकसित की।

तुकाराम महाराज ने भक्ति के महत्व के बारे में बताया और उनके साथ महाराष्ट्र के अन्य संतों के प्रयासों से धीरे-धीरे भक्ति समुदाय यानी “वारकरी संप्रदाय” का गठन हुआ। उन्होंने सदाचार, दया, करूणा, ईश्वर के प्रति प्रेम की शिक्षा दी। उन्होंने समाज को शिक्षित करते हुए सरल एवं ईमानदार जीवन जीने की प्रेरणा दी।

हर साल देहु से पंढरपुर जाने वाली तुकाराम महाराज वारी
हर साल देहु से पंढरपुर जाने वाली तुकाराम महाराज वारी

उनके द्वारा लिखे गए अंशों से भगवान विठ्ठल के प्रति सच्ची भक्ति का महत्व, तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियाँ, मानव जीवन की चुनौतियाँ और भौतिक जगत की अनिश्चितता पर उनके विचारों को समझा जा सकता है। उनके अभंगों द्वारा प्रतिपादित उनके विचारों को दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली।

अंत में अपने विचारों को संक्षेप में कहें तो, दुनिया की दिखावटी चीजें लंबे समय तक नहीं टिकती हैं। क्योंकि कभी न बार ऐसी बातों का सच दुनिया के सामने आ ही जाता है। असत्य के आधार पर संसार में अधिक दूर तक नहीं जाया जा सकता। इसलिए हमेश सच्चाई के मार्ग पर चलो, सच्चाई का मार्ग कठिन अवश्य होता है पर आपको आपकी मंजिल तक जरूर पहुँचाता है।

उद्धरण

प्रतिमा का श्रेय

संत तुकाराम महाराज मंदिर, देहु, महाराष्ट्र, श्रेय: Udaykumar PR

संत तुकाराम महाराज, श्रेय: Prabhat

पंढरपुर में भगवान विठ्ठल का चित्र, श्रेय: Nevil Zaveri

संत तुकाराम पुष्पक विमान पर सवार होकर स्वर्ग जाते हुए दर्शाता चित्र, श्रेय: Ravi Varma Press

हर साल देहु से पंढरपुर जाने वाली तुकाराम महाराज वारी, श्रेय: Shubhi Shrivastava

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