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परिचय
शिर्ड़ी के साईं बाबा को एक आध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ पूरे भारत में एक महान संत के रूप में जाना जाता है। उन्हें सभी भक्त स्नेह के साथ “साईनाथ” भी कहते हैं। साईं बाबा एक फ़कीर थे, जिन्होंने सारा जीवन एक गुरु के रूप में व्यतीत किया।
साईं बाबा का जन्म स्थान और जन्म तिथि
निश्चित प्रमाणों के अभाव के कारण, उनका जन्मस्थल और जन्म तिथि अभी भी पूरी तरह से अज्ञात है। इसलिए, उनके जन्म के बारे में कई अफवाहें प्रचलित हैं। हालांकि, वर्तमान में उनके जन्म के बारे में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।
“साईं” का मतलब क्या हैं?
जब म्हालसापति ने पहली बार उनको पुकारा, तो उन्होंने उन्हें “साईं” कहा था। उस समय इस्तेमाल की जाने वाली मराठी-उर्दू-फारसी भाषा में, साई को “यवनी संत” या “फकीर” कहा जाता है।
शिर्ड़ी के साईं बाबा
साईं बाबा अपने जीवन का अधिकांश समय शिर्ड़ी गाँव में बिताया। जो अहमदनगर जिले के राहता तालुका में एक छोटा सा गाँव हैं। इसलिए, उन्हें “शिर्ड़ी के साईं बाबा” के रूप में लोग पहचानने लगे। शिर्ड़ी में महसूस किया जाने वाला दिव्य अनुभव, मन की शांति और आत्मविश्वास वास्तव में अतुलनीय है। शायद यही कारण है की, शिर्ड़ी लाखों भक्तों के लिए एक श्रद्धास्थान बन गया हैं।
साईं बाबा के विचार
भगवान सर्वशक्तिमान भगवान हैं। इन धार्मिक विचारों के माध्यम से, उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता हासिल की। इसके अलावा, भगवान जाति और पंथ की परवाह किए बिना सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इसी तरह, उन्होंने अपने समय दौरान, समाज में जातिगत भेदों को खत्म करने में योगदान दिया। “सबका मलिक एक” मतलब सभी के लिए एक ईश्वर है। साथ में, वे सभी अनुयायी कहते, “अल्लाह तुम्हारा भला करेगा!”।
दोनों धर्मों के ये काव्यात्मक भाष्य बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा, “मुझे (गुरु के रूप में) देखो और मैं तुम्हें देखूंगा।
साईं बाबा की शिक्षा
उन्होंने वर्णन किया की, किस प्रकार भौतिक चीजों का प्रेम आत्मज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनता है। उन्होंने यह भी कहा की, मानव जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान की प्राप्त करना है। आत्मज्ञान की शिक्षा के साथ-साथ, उन्होंने प्रेम, करुणा, क्षमा, दान, संतोष, आंतरिक शांति, दूसरों की मदद करना, भगवान और गुरु की सेवा और आदर भी सिखाया। एक शिष्य का सच्चे सदगुरु के प्रति समर्पण का महत्व भी बताया। उन्होंने सभी अनुयायियों को विश्वास और सबूरी, यानी विश्वास और धैर्य का महत्व सिखाया।
ऐतिहासिक दस्तावेज
साईं बाबा के जीवन के बारे में विश्वसनीय जानकारी उनकी पुस्तक, “श्री साई सच्चरित्र” के रूप में उपलब्ध है। जिसे हेमाडपंत (गोविंद रघुनाथ / अन्नासाहेब दाभोलकर) नाम के शिष्य द्वारा वर्ष १९२२ में लिखा था। यह पुस्तक १९१० से हेमाडपंत और अन्य शिष्यों द्वारा की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों पर आधारित है।
हालाँकि साईं बाबा मूल रूप से शिरडी के नहीं हैं, लेकिन उनका जन्मस्थल शिर्ड़ी से बहुत दूर नहीं होनी चाहिए। साईं बाबा से उनके जन्मस्थान और माता-पिता के बारे में पूछने पर, वे परस्पर विरोधी और भ्रामक जबाब देते थे। उनके सबसे घनिष्ट अनुयायी, “म्हालसापति” को उन्होंने उनके जन्म के बारे में बताया ऐसा माना जाता है।
उस कहानी के हिसाब से, उनका जन्म परभणी जिले के पाथरी गाँव में एक देशस्त ब्राह्मण माता-पिता के घर में हुआ था। साथ ही उनकी जन्मतिथि २७ सितंबर, १८३७ होनी चाहिए। “साईधाम चैरिटेबल ट्रस्ट” द्वारा शिर्ड़ी की वंशावली के शोध के अनुसार, इस बात के पुख्ता सबूत हैं की, उनका नाम “बाबा हरिभाऊ भुसारी” था। कई लोग इस सिद्धांत का समर्थन भी करते हैं।
माना जाता हैं, एक दिन उन्हें माता पिता द्वारा, एक फकीर की देखभाल सौंपी गई। बाद में, उस फकीर ने उस उन्हें “वेकुंशा” नामक एक हिंदू गुरु के पास सौंपा गया। कुछ लोग उन्हें मोमिन जनजाति का मुसलमान मानते हैं।
साईं बाबा और उनका कार्य
उन्होंने जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव का कड़ा विरोध किया। उनके अनुसार, चाहे आदमी हिंदू हो या मुसलमान, उसके साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। क्योंकि अलग रहने में वह ताकत नहीं है जो एकता में हैं।
वह धर्म के पगड़े को काम करने के लिए मस्जिद में रहे। उस मस्जिद को उन्होंने “द्वारकामाई मस्जिद” कहा। उन्होंने अपने दोनों धर्मो और उनकी समानता के लोगों को समझाने के लिए, दोनों धर्मों के धार्मिक अनुष्ठानों, परंपराओं, शब्दों, आकृतियों का अध्ययन किया। साईं बाबा ने सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाने का काम किया। यही कारण है कि साईं बाबा हर धार्मिक के इतने करीब लगते हैं।
साईं बाबा की ख़्याति
उनके के भक्त दुनिया भर में व्यापक रूप से जाने जाते हैं। पूरी दुनिया साईं बाबा के मंदिर में पाए जाते हैं। उनके भक्त उन्हें एक दिव्य अवतार मानते हैं। कुछ हिंदू भक्त उन्हें शिव का अवतार मानते हैं, कुछ उन्हें दत्तवतार मानते हैं, तथा कुछ भक्त उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। इसलिए, मुस्लिम धर्म में सूफी संतों में साईं बाबा का स्थान हमेशा अग्रणी रहता है। इसलिए, धर्म, जाती, पंथ को दूर रख कर, शिर्ड़ी के साईं मंदिर में सभी लोग साईं बाबा के दर्शन के लिए बड़ी भीड़ उपस्तित होते हैं।
अंत में, १५ अक्टूबर, १९१८ को साईं बाबा ने शिर्ड़ी में समाधि ली थी।