Indian Monuments in Hindi | भारत के ऐतिहासिक स्मारक

by अप्रैल 5, 2024

प्रस्तावना

भारत के स्मारक भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सभी स्मारक भारत की एक महान ऐतिहासिक पार्श्वभूमि दर्शाते है। इसीलिए, आपको भारत में कई खूबसूरत और ऐतिहासिक स्थान देखने को मिलते हैं। ज्यादातर विदेशि पर्यटकों को भारत के स्मारकों में बहुत रुचि है।

भारत के पूर्वी तट से लेकर पश्चिम में बंगाल की खाड़ी तक, साथ ही उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में गंगोत्री तक फैले ऐतिहासिक स्थल आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास के साक्षी बनाकर खड़े हैं। कई स्मारक ऐसे भी है जिन स्मारकों के बारे में यहां तक ​​कि विदेशियों के साथ-साथ ज्यादातर भारतीय भी नहीं जानते हैं।

यह बहुमूल्य भारतीय स्मारकें मंदिरों, किलों, महलों और संग्रहालयों के रूप में स्थित हैं। इनमें से कई स्मारक कई सालों तक ऐतिहासिक महत्ता के साक्ष के अभाव से दुनिया से छिपे रहे। आपने टेलीविजन पर या किताबों में इनमें से कुछ प्रसिद्ध स्थानों के बारे में सुना भी होगा। हमने ७ सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय स्थानों की सूचि तैयार की है। मुझे ऐसा लगता है की, ये सब स्थल हर किसीको पता होने ही चाहिए।

इसलिए, मैं आपके साथ ७ भारत के ऐतिहासिक स्मारकों के संग्रह को साझा कर रहा हूँ। इन स्मारकों के बारे में यह जानकारी निश्चित रूप से भारतीय इतिहास को जानने में आपकी मदद करेगी।

१. ताज महल

भारतीय स्मारक - ताज महल
ताज महल एक विस्मयकारी वास्तुशिल्प आश्चर्य है जो संगमरमर और कीमती पत्थरों में भारतीय विरासत का प्रतिनिधित्व करता है और इतिहास की लोकप्रिय प्रेम कहानियों को भी अमर बनाता है।

ताजमहल को “प्यार का स्मारक” कहा जाता है। ताजमहल भारत में ऐतिहासिक धरोहरों वाले शहर आगरा में दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत के रूप में प्रसिद्ध है। इस भवन का निर्माण क्यों हुआ यह एक विवादास्पद विषय हैं।

हालाँकि, यह माना जाता था कि शाहजहाँ ने अपनी तीसरी पत्नी, मुमताज़ महल की याद में स्मारक बनवाया था। ताजमहल में मुख्य रूप से मुमताज महल की कब्र है। शाहजहाँ का मकबरा भी यहाँ मिला था।

विशेषताएँ

यमुना नदी के तट पर सफेद रंग की संगमरमर की इमारत दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। ताजमहल मुगल वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। इसे इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का संयोजन माना जाता है। इंडो-इस्लामिक का अर्थ इस्लामी, फारसी, तुर्की और भारतीय वास्तुकला का संगम है।

व्यापक उद्यान, वृत्ताकार गुंबद, मीनारें और जालीदार नक्काशी मुगल वास्तुकला की विशेषताएं मानी जाती हैं। मुख्य ईमारत की तीन दीवारों के बिच एक विस्तीर्ण बगीचा, एक गेस्ट हाउस और एक मस्जिद शामिल हैं।

यह भारत के सभी स्मारकों में से सबसे प्रसिद्ध स्मारक हैं। हर साल दुनिया भर के लगभग 5 से 7 लाख पर्यटक भारत में सिर्फ ताजमहल देखने आते हैं। इमारत का कुल क्षेत्रफल, २ हेक्टेयर के क्षेत्र को कवर करता हैं।

खर्चा देखा जाए तो ५२.८ बिलियन डॉलर (८२७ मिलियन डॉलर) थी, जिसका मतलब ८२.७ करोड़ रुपये था। ताजमहल को ७ वें मेमोरियल चयन के विजेता के रूप में ताज पहनाया गया।

विश्व विरासत स्थल

सन १६३२ साल में शुरू हुआ ताजमहल का निर्माण लगभग २१ साल में यानि की सन १६५३ में पूरा हुआ। मुख्य ईमारत की संरचना आयताकार है, और इसमें प्रवेश के लिए बड़े द्वार हैं। प्रवेश करने पर, उनके सामने फव्वारे, भव्य बगीचा और शानदार ताजमहल को देख मन प्रफुल्लित हो जाता हैं।

आंतरिक वास्तुकला बाहरी सुंदरता के साथ समान रूप से आकर्षक है। यूनेस्को द्वारा १९८३ में ताजमहल को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। ताजमहल भारत के इस्लामी जगत और विश्व विरासत का एक उत्कृष्ट नमूना था।

२. कुतुब मीनार

कुतुब मीनार - भारतीय स्मारक
कुतुब मीनार प्रसिद्ध भारतीय स्मारकों में से एक है।

दिल्ली में मध्ययुगीन काल में बना कुतुब मीनार हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। कुतुब मीनार दिल्ली के प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है। क़ुतुब मीनार एक मस्जिद के आकार की वास्तु है, जिसमें नींव, चढ़ाई के लिए सीढ़ियाँ, गोलाकार छत और शिखर शामिल हैं।

कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के बाद, यह स्मारक आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रमाण है। यूनेस्को ने महरौली में स्थित कुतुब मीनार को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

ऐतिहासिक महत्व

भारत का कुतुब मीनार ममलुक वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाया गया था। दिल्ली में सुल्तानशाही के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९२ में कुतुब मीनार का निर्माण शुरू किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक का कार्यकाल १२०६ से १२१० साल, यानि की चार साल का था। उसके बाद के शासकों ने कुतुब मीनार के आधे काम को पूरा किया।

कुतुब मीनार की ऊंचाई लगभग २३ मीटर है, और व्यास १४.३ मीटर (४७ फीट) है। जैसे-जैसे शिखर करीब आता है, इसका व्यास घटता चला जाता है। टॉवर के शीर्ष पर, इसका व्यास २.७ मीटर (९ फीट) कम है। कुतुब मीनार वास्तुकला का अद्भुत एक नमूना है।

इसकी आकर्षक नक्काशी पर्यटकों को आकर्षित करती है। कुतुब मीनार के अलावा इसी जगह की अन्य इमारतें मध्यकालीन वास्तुकला में की गई प्रगति को साबित करती हैं। लोह स्तंभ मध्यकालीन धातु का एक अविश्वसनीय उदाहरण है। धुप, हवा और बारिश का इस स्तंभ कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

इस स्तंभ की विशेषता है, की इसपर अभी तक जंग नहीं लगा है। उसके अलावा, अलाई दरवाजा जैसी कई प्राचीन इमारतें हैं। यहाँ की वास्तुये और उनपर की गयी नक्काशी देखकर लोग पुरातन कला की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते। यहाँ पर होनेवाला कुतुब महोत्सव सभी मुसाफिरों के लिए विशेष होता हैं। इस आयोजन में सभी वास्तु की जानकारी दी जाती हैं।

३. इंडिया गेट

इंडिया गेट - प्रथम विश्व युद्ध के शहीदों की याद में बनाया गया एक स्मारक
दिल्ली का इंडिया गेट जो प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध के शहीदों की याद में बनाया गया एक स्मारक है।

इंडिया गेट एक युद्ध स्मारक है, जिसे अंग्रेजी वास्तुकार सर एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन किया गया था। इंडिया गेट की भव्यता राजपथ मार्ग की शोभा बढ़ाती है।

इंडिया गेट से मिलते-जुलते स्मारकों में फ्रांस में आर्क डी ट्रायम्फ, रोम में आर्क ऑफ कॉन्स्टेंटाइन और मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया शामिल हैं। अक्सर इन स्मारकों के बीच अंतर बताना मुश्किल होता है। दिल्ली गेट, जो केवल ४२ मीटर ऊंचा है, हर साल २६ जनवरी को भारतीय गणतंत्र दिवस की शोभा बढ़ाता है।

इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध के ब्रिटिश और भारतीय शहीदों की याद में बनाया गया था। लगभग ८२००० भारतीय और ब्रिटिश सैनिक शहीद हो गये। दिलचस्प बात यह है, कि इस स्मारक पर १३,३०० सैनिकों के नाम खुदे हुए हैं।

इस स्मारक की नींव साल ईसवी १९२१ में रखी गई थी और इसका निर्माण महज १० साल बाद साल ईसवी १९३१ में पूरा हुआ। इस स्मारक का उद्घाटन भारत के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड इरविन ने किया था। यह स्मारक वास्तव में वास्तुकला और इतिहास प्रेमियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

४. स्वर्ण मंदिर

स्वर्ण मंदिर - सिख धर्म का सबसे पवित्र मंदिर
श्री हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर के नाम से लोकप्रिय, अमृतसर का यह स्मारक सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थान है। चौथे गुरु रामदास साहिब और दसवे गुरु गोबिंद सिंह ने इस मंदिर को सभी के लिए पूजा स्थल के रूप में स्थापित किया।

भारत का आध्यात्मिक इतिहास प्राचीन काल से चलता आ रहा है। तो कुछ आध्यात्मिक मान्यताये समय-समय पर होते रहे। सिखों में स्वर्ण मंदिर जिसे “हरमंदिर साहिब” या “दरबार साहिब” के नाम से जाना जाता है, यह एक पवित्र मंदिर है। इस मंदिर की अतुलनीय पवित्रता का केवल अनुभव ही किया जा सकता है।

उन्नीसवीं सदी की राजनीतिक अशांति और युद्ध जैसी स्थिति के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने वर्ष ईसवी १८३० में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। मंदिर का निर्माण संगमरमर और सोने से किया गया था।

मंदिर के चारों ओर आंखों को ठंडक पहुंचाने वाला पानी और बीच में चमकता स्वर्ण मंदिर मन में असीम ऊर्जा पैदा करता है। सभी धर्मों के लोग एक अलग धार्मिक आनंद का अनुभव करने के लिए अमृतसर शहर के मध्य में स्थित इस स्वर्ण मंदिर में आते हैं।

इस मंदिर को समानता का प्रतीक माना जाता है। यहां हजारों लोगों की भीड़ में भी सिख प्रार्थनाओं की ध्वनि आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति पैदा करती है।

स्वर्ण मंदिर में हर साल लाखों लोग आते हैं, और इस आध्यात्मिक अनुभूति का आनंद लेते हैं। अमृत ​​सरोवर की खुदाई ईसवी १५७७ में सिखों के चौथे गुरु राम दासजी के निर्देश पर की गई थी। इस झील के मध्य में ही यह एक बड़ा मंदिर है। अमृत ​​सरोवर के आसपास कई छोटे-बड़े स्मारक हैं। इसी अमृत सरोवर के कारण यहां के शहर का नाम अमृतसर पड़ा।

मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान सिखों पर बहुत अत्याचार हुए। अमृतसर के क्लॉक टॉवर में सिख संग्रहालय सिखों के साथ हुए अन्याय को प्रदर्शित करता है। अगर आप इतिहास की जानकारी रखते है तो आप जरूर इस पुस्तकालय को भेट दे।

अमृत ​​झील के दक्षिण-पूर्वी भाग में हम भव्य रामगढि़या बुंगा किला देख सकते हैं। इस किले के चारों ओर मुस्लिम स्थापत्य शैली की मीनारें (टॉवर) देखी जा सकती हैं। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर वास्तव में दुनिया की सबसे खूबसूरत कला कृतियों में से एक है।

५. भारत का प्रवेश द्वार

गेट वे ऑफ़ इंडिया
ब्रिटिशकालीन स्मारक गेटवे ऑफ इंडिया

गेट वे ऑफ इंडिया स्मारक पश्चिमी, अरबी और भारतीय वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण है। वर्ष ईसवी १९२४ में निर्मित यह स्मारक अपोलो बंदरगाह पर बना है। इस भव्य स्मारक का डिज़ाइन ब्रिटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा किया गया था। यह अद्भुत स्मारक किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की मुंबई यात्रा की स्मृति में बनाया गया था।

यह मुंबईकरों के साथ बाहरी राज्य के पर्यटकों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है। भारत के पर्यटकों के साथ-साथ कई विदेशी पर्यटक भी इस स्मारक को देखने भारी संख्या में आते हैं। इस स्थान से एलीफेंटा गुफाओं तक जाने के लिए नौकायन सेवाएं उपलब्ध हैं।

साल ईसवी १९११ में शुरू हुआ गेटवे ऑफ इंडिया का काम महज १३ साल बाद १९२४ में पूरा हो गया। इस मजबूत संरचना का निर्माण ठोस कंक्रीट और बेसाल्ट से किया गया है और इसे खूबसूरत नक्काशी से भी सजाया गया है।

ईसवी १९४७ में भारत की आज़ादी से पहले इस स्मारक का उपयोग परिवहन के लिए किया जाता था। गेटवे ऑफ इंडिया से ही अंग्रेजों का अंतिम दस्ता इंग्लैंड के लिए रवाना हुआ था।

इस स्मारक के आसपास श्री शिवछत्रपति और स्वामी विवेकानन्द की मूर्तियाँ हैं। आसपास के क्षेत्र में शाम ढलने के बाद गेटवे ऑफ इंडिया रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठता है। उस मनोरम दृश्य को देखने के लिए हर शाम सैकड़ों लोग उमड़ते हैं।

इसके अलावा, आपको इस जगह पर दो पुराने पांच सितारा होटल भी मिल सकते हैं। एक है होटल ताज और दूसरा है होटल ओबेरॉय। उच्च वर्ग के भारतीय और विदेशी पर्यटक इन होटलों में ठहरना पसंद करते हैं।

६. कमल मंदिर

लोटस टेम्पल - भारत का सबसे बेहतरीन मानव निर्मित स्मारक जहां प्रकाश व्यवस्था के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है
लोटस टेम्पल, भारत के बेहतरीन मानव निर्मित स्मारकों में से एक है और यहाँ प्रकाश व्यवस्था के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया है।

नई दिल्ली के बहापु गांव में स्थित “कमल मंदिर” को लोटस टेम्पल कहा जाता है क्योंकि इसका आकार कमल जैसा है। सफेद कमल की पंखुड़ियों से बना खिलता हुआ कमल का डिज़ाइन रात में रंगीन रोशनी में शानदार दिखता है। बहाई आस्था को समर्पित पर सभी धर्मों के लिए खुले इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती।

यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर जाति, धर्म, पंथ, नस्ल, राष्ट्रीयता से परे वैश्विक एकता हासिल करने का प्रयास कर रहा है। यह दुनिया भर के सात बहाई पूजा स्थलों में से एक है। सौर ऊर्जा का उपयोग करने वाला यह दिल्ली का पहला मंदिर है। सौर ऊर्जा का उपयोग करके, मंदिर सालाना १४४,००० रुपये ($२०,४२२.८०) बचाता है।

मंदिर परिसर में प्रवेश करते समय द्वार पर बनी मनमोहक मोर की मूर्तियाँ अत्यंत आकर्षक लगती हैं। मंदिर के रास्ते के दोनों किनारे हरे-भरे लॉन और झाड़ियों से सुशोभित हैं। साथ ही रंग-बिरंगे फूल इस क्षेत्र की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। मंदिर का शांतिपूर्ण वातावरण जप, तप और ध्यान के लिए अनुकूल है। अंदर की अनूठी वास्तुकला सभी के लिए आकर्षण है।

आप अंदर के शांतिपूर्ण वातावरण में किसी धार्मिक पुस्तक का अध्ययन, वाचन, लेखन कर सकते हैं। मंदिर परिसर में गायन, धार्मिक संगीत सुनने की अनुमति है। आनंदमय और शांतिपूर्ण वातावरण में धार्मिक आनंद का अनुभव करने के लिए कमल मंदिर एक अच्छी जगह है।

७. अजंता की गुफाएँ

अजंता की गुफाएँ - भारतीय वास्तुकला, नक्काशी, चित्रकला का अद्भुत उदाहरण
भारत में औरंगाबाद के पास यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है जिसे अजंता की गुफाएँ कहा जाता है। यहाँ मन को झकझोर देने वाले प्राचीन आश्चर्य हैं। इन गुफाओं में सुंदर बौद्ध चित्र, पत्थर काट कर बनायी नक्काशी, और मूर्तियां हैं, जो भारत की समृद्ध संस्कृति और कला को दर्शाती हैं। अजंता गुफाओं की यात्रा विस्मय और आश्चर्य से भरे समय में वापस यात्रा करने जैसा है।

अजंता की गुफाएँ महाराष्ट्र के संभाजीनगर जिले में एक पहाड़ी के मध्य में पाई जाती हैं। दक्कन के पठार पर स्थित इस जिले का पुराना नाम औरंगाबाद है।

दक्कन का पठार मध्य भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह पश्चिमी घाट यानी सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के मध्य में स्थित है।

ऐतिहासिक महत्व

“अजंता की गुफाएँ अपनी प्राचीन बौद्ध कला और जीवंत दीवार चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।”

“छठी सदी के अंत और सातवीं सदी की शुरुआत के दौरान, यह वास्तव में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक पसंदीदा निवास स्थान था।”

विशेषता

इस गुफा की खोज सबसे पहले ईसवी १८१९ में ब्रिटिश अधिकारियों ने की थी। ये गुफाएं भारत के इतिहास की एक महान कहानी हैं, जो हमें अतीत के बारे में बहुत कुछ बताती हैं।

इन शानदार पत्थर की गुफाओं से ही पहाड़ के किनारों पर अद्भुत बौद्ध कला की कलाकृतियाँ उकेरी गई हैं।

अजंता की गुफाएँ हिंदू, बौद्ध और जैन अनुष्ठानों को समर्पित ३० गुफाओं के एक बड़े समूह का हिस्सा हैं।

चट्टान के ठीक बगल में प्राचीन बौद्ध मठ और मंदिर भी खुदे हुए हैं। वे अजंता-एलोरा विश्व धरोहर स्थल का एक विशेष हिस्सा हैं।

अजंता की बौद्ध गुफाएँ पत्थर में उकेरी गई सबसे बड़ी गुफा कला हैं। यह लगभग २००० वर्ष पूर्व से १५०० वर्ष पूर्व की मानव निर्मित कला का अद्भुत उदाहरण है। इन सभी गुफाओं को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल माना जाता है, और ये बौद्ध धर्म के हीनयान स्कूल से जुड़ी हैं।

बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय के भिक्षुओं को थेरवड़ा भी कहा जाता है। इन गुफाओं का उपयोग शांति और ध्यान की तलाश में साधु-संन्यासियों को रखने के लिए किया जाता था।

अजंता की गुफाएँ एलोरा की गुफाओं के पास स्थित हैं। अजंता की गुफाएँ चरणेंद्री पहाड़ियों की चट्टानों में खुदी हुई हैं।

यह एक पहाड़ी पर स्थित हैं, जिसे ६ वीं शताब्दी के मध्य से ७ वीं शताब्दी के मध्य तक गुफाओं की एक श्रृंखला के रूप में विकसित किया गया था।

निष्कर्ष

भारत के विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों और स्थानों का भ्रमण करने से हमें भारतीय संस्कृति और उसके विरासत की झलक मिलती है। भारत में मौजूद ये स्मारक निश्चित रूप से हमारे देश के इतिहास के बारे में जानने में मदद करते हैं।

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अधिक रुचि रखने वाले लोगों को अधिक जानकारी के लिए भारत के ऐतिहासिक स्मारक लेख यह लेख भी पढ़े। इस लेख में हिना गनोत्रा ने कुल ३३ भारतीय स्मारकों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है।

छवि का श्रेय

७. लोटस टेम्पल, छवि का श्रेय: व्हॅन्डलायझर, स्रोत: विकिमीडिया

लेखक के बारे में

आशीष सालुंके

आशीष सालुंके

आशीष एक कुशल जीवनी लेखक और सामग्री लेखक हैं। जो ऑनलाइन ऐतिहासिक शोध पर आधारित आख्यानों में माहिर है। HistoricNation के माध्यम से उन्होंने अपने आय. टी. कौशल को कहानी लेखन की कला के साथ जोड़ा है।

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